SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पर बोले, कबीर, नानक, दादू, सहजो, फरीद, सूफियों पर बोले, झेन फकीरों पर बोले; राम को क्यों छोड़ जाते हैं? तुलसी की रामायण को क्यों छोड़ जाते हैं? तुलसीदास पर क्यों नहीं बोलते? राम पर क्यों नहीं बोलते? __ कारण है। सज्जन में मेरी बहुत रुचि नहीं है। संत में मेरी रुचि है। राम मर्यादापुरुषोत्तम हैं। मर्यादा के जो पार है, उसमें मेरी रुचि है। कृष्ण में मेरी रुचि है, क्योंकि कृष्ण मर्यादा-शून्य हैं। कृष्ण से ज्यादा चरित्रहीन व्यक्ति पाओगे संसार में! कृष्ण से ज्यादा गैर-भरोसे योग्य व्यक्ति पाओगे कहीं! किसी बात का पक्का नहीं है। छोटे बच्चे जैसा व्यवहार है। कसम खा ली थी कि शस्त्र न उठाऊंगा, फिर उठा लिया! कसमों का कोई हिसाब रखे! किसको याद रहे कसम! छोटे बच्चे जैसा व्यवहार है! मझसे लोग पूछते हैं कि कृष्ण के इस व्यवहार में आप क्या देखते हैं? कछ भी नहीं देखता हूं-यह सीधा-सरल व्यवहार है। खा ली थी कसम किसी क्षण में; अब वह क्षण गया, नया क्षण आ गया। अब इस नये क्षण की नई स्थिति है। इस नये क्षण का नया संवेग है! इस नये क्षण के लिए नया उत्तर चाहिए! पुरानी कसम से बंधे रहते तो मर्यादा होती। बंधे न रहे। अस्तित्व के नये ढंग के साथ नये हो लिए। ___ तुमने कृष्ण का एक नाम सुना रणछोड़दास जी! भगोड़ादास जी! भाग खड़े हुए! किसी मौके पर देखा कि भागने में ही सार है तो फिर ऐसा नहीं कि जिद की तरह अड़े रहेंगे कि चाहे जान रहे कि जाये, झंडा ऊंचा रहे हमारा! भाग गये, कि देखा कि परिस्थिति भागने की है, तो इसमें अकड़ न रखी। उनके भक्तों ने भी खूब नाम बना लिया-रणछोड़दास जी! कृष्ण में एक मर्यादा-पार की प्रभा है। कृष्ण को समझना थोड़ा कठिन है। राम सीधे-साफ हैं। कछ विशिष्ट नहीं। महिमापूर्ण हैं, मगर विशिष्ट नहीं। महात्मा हैं, लेकिन संत नहीं। इसलिए जान कर छोडता रहा है। जब परम की ही बात करनी हो तो राम वहां नहीं आते। और इसी की सचना हिंदुओं ने भी दी। उन्होंने भी राम को अंशावतार कहा; पूर्णावतार कहने की हिम्मत नहीं की, क्योंकि बात गलत हो जायेगी। कृष्ण को पूर्णावतार कहा। कहा कि यह पूरा-पूरा परमात्मा। पूरा-पूरा परमात्मा का अर्थ हुआः अब मर्यादा भी नहीं। मर्यादा भी आदमी की होती है। सीमा आदमी की होती है। तो ठीक है राम के लिए मर्यादापुरुषोत्तम नाम, कि पुरुषों में उत्तम मर्यादा वाले, सबसे बड़ी मर्यादा वाले। लकीर के बिलकुल फकीर हैं। यह किसी धोबी ने कह दिया अपनी पत्नी से कि 'तू रात भर कहां रही? तू मुझे राम समझी है कि वर्षों रह गई सीता रावण के घर और फिर ले आये? छोड़ ये बातें, निकल घर से।' बस यह बात काफी हो गई कि यह तो मर्यादा टूटती है। तो मर्यादा टूटती है, सीता की अग्नि-परीक्षा भी ले ली, सब तरह उसे कोरा, उसको पूरा पक्का-खरा पाया, फिर भी उसे जंगल छुड़वा दिया। मर्यादा टूटती है! ___ कृष्ण बड़े और ढंग के हैं। कोई मर्यादा नहीं है। मर्यादा मात्र शून्य है। इसलिए कृष्ण को पूर्णावतार कहा है; परमात्मा जैसे पूरा-पूरा उतरा! परमात्मा संत में पूरा-पूरा उतरता है; महात्मा में बंधा-बंधा उतरता है। और दुर्जन में तो पड़ गया गड्डे में, कीचड़-कबाड़ में। जैसे शराबी पड़ा होता है नाली में, ऐसा दुर्जन में परमात्मा नाली में पड़ जाता है; सज्जन में खड़ा हो जाता है; संत में उड़ने लगता है। संत की ही बात मैंने की है अब तक इस आशा में कि जहां जाना है, जो होना है, उसकी ही बात करनी 52 अष्टावक्र: महागीता भाग-4
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy