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बुरे में सार देखा, वे दुर्जन; जिन्होंने अच्छे में सार देखा, वे सज्जन; जिन्होंने दोनों में सार नहीं देखा, वे संत। जो दोनों के पार हो गये, जिन्होंने दोनों को देख लिया, दोनों को देखा, खूब देख लिया, भरपूर देख लिया और दोनों को थोथा पाया...!
मैंने ऐसी दुनिया जानी। इस जगती के रंगमंच पर आऊं मैं कैसे क्या बन कर जाऊं मैं कैसे क्या बन कर सोचा, यत्न किया जी भरकर किंतु कराती नियति-नटी है मुझसे बस मनमानी। मैंने ऐसी दुनिया जानी। आज मिले दो, यही प्रणय है दो देहों में यही हृदय है एक प्राण है एक श्वास है भूल गया मैं यह अभिनय है सबसे बढ़ कर मेरे जीवन की थी यह नादानी।
मैंने ऐसी दुनिया जानी। देखा बुरा, भूल गये कि नाटक है। देखा भला, भूल गये कि नाटक है। बुरे में जो भटक गया, हो गया रावण। भले में जो भटक गया, हो गया राम। जिसने बुरे को ओढ़ लिया, हो गया पापी। जिसने भले को ओढ़ लिया, हो गया पुण्यात्मा। जिसने बुरे में जड़ें जमा लीं, हो गया हीनात्मा। और जिसने भले में जड़ें जमा लीं, हो गया महात्मा। लेकिन जिसने दोनों में जाना—
सोचा, यत्न किया जी भरकर किंतु कराती नियति-नटी है मुझसे बस मनमानी। मैंने ऐसी दुनिया जानी। भूल गया मैं यह अभिनय है सबसे बढ़ कर मेरे जीवन की थी यह नादानी।
मैंने ऐसी दुनिया जानी। और जिसने देखा कि सब नाटक है-बुरा भी, भला भी; रावण भी रामलीला के पात्र, राम भी! जिसने जीवन को अभिनय जाना; जो साक्षी हो कर पार खड़ा हो गया; जिसने कहा, न मैं रावण हूं न मैं राम हूं-वह पार हो गया!
मेरे पास बहुत मित्र पत्र लिख कर भेज देते हैं कि आप कृष्ण पर बोले, बुद्ध पर बोले, जीसस
साक्षी आया, दुख गया
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