________________
पंथ क्या, पद की थकन क्या, स्वेद-कण क्या? दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं! एक भी संदेश आशा का नहीं देते सितारे प्रकृति ने मंगल-शकुन पथ में नहीं मेरे संवारे विश्व का उत्साहवर्धक शब्द भी मैंने सुना कब किंतु बढ़ता जा रहा हूं लक्ष्य पर किसके सहारे विश्व की अवहेलना क्या, अपशकुन क्या?
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं! रोओ! रोने से तुम्हारी आंखें साफ होंगी। और तुम्हारी आंखों के साफ होते ही तुम पाओगे कि दो और नयन प्रगट होने लगे तुम्हारे आंसुओं में।
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं! वे प्रभु के नयन! वे परमात्मा की आंखें!
तुम्हारे आंसू तुम्हारी आंखों से सारे धूंघट को हटा देंगे। आंखों के सारे धूलिकण बह जायेंगे। आंखों की सारी कालिख बह जायेगी। जन्मों-जन्मों का उपद्रव आंखों पर इकट्ठा है, वह बह जायेगा। तत्क्षण, जब तुम आंसुओं से भीगी आंखों को ऊपर उठाओगे, तुम पाओगेः
पंथ क्या, पद की थकन क्या, स्वेद कण क्या? दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं! किंतु बढ़ता जा रहा हूं लक्ष्य पर किसके सहारे विश्व की अवहेलना क्या, अपशकुन क्या?
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं! वे दो नयन उसी क्षण दिखाई पड़ने शुरू होते हैं जब तुम्हारे दो नयन शुद्ध, साफ, निर्दोष हो जाते हैं। आंसुओं से बड़ी आंख को साफ करने की कोई कला नहीं है। शरीर के तल पर भी यही सही है
और आत्मा के तल पर भी यही सही है। तम जा कर आंख के डाक्टर से पछना। वह कहता है: आंस आंख की सारी बीमारियों को शुद्ध करते हैं। आंख पर कोई भी कीटाणु आ जाये, बीमारी का कोई इन्फेक्शन आ जाये, आंसू उसे मार डालते हैं। एक-एक आंसू लाख-लाख कीटाणुओं को मारने में सफल हो जाता है।
यह तो शरीर की बात हुई। मैं कोई शरीर का डाक्टर नहीं हूं। लेकिन मैं तुमसे कहता हूं : आंसू तुम्हारे भीतर के भी बहुत-से रोगों को मार डालते हैं। जो दिल खोल कर रो सकता है उसका क्रोध समाप्त हो जायेगा। जो दिल खोल कर रो सकता है उसका अहंकार पिघल जायेगा। जो दिल खोल कर रो सकता है, वह अचानक पायेगा निर्बोझ हो गया, निर्भार हो गया, उड़ने को तैयार हो गया। गुरुत्वाकर्षण कम हो जाता है। तुम्हारी आत्मा आकाश की यात्रा पर निकल सकती है। .
412
अष्टावक्र: महागीता भाग-4