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________________ आखिरी प्रश्नः कल आपका जन्म दिवस है। आपके प्रेमी, आपके शिष्य, आपके संन्यासी बड़ी-बड़ी भावपूर्ण भेंट लाये हैं। मेरे पास कुछ भी नहीं है। मेरे पास भेंट करने के लिए शून्य के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। क्या आप इसे स्वीकार करेंगे ? शू अन्य से बड़ी और क्या भेंट हो सकती है ! ! शून्य ही तुम ले आओ, इसी की तो मैं प्रतीक्षा करता हूं, तुम कुछ और लाये, व्यर्थ । तुम शून्य ले आये, सार्थक । शून्य यानी समाधि । शून्य यानी ध्यान । शून्य यानी पूर्ण को पाने का द्वार । और यह सवाल नहीं है कि तुम कुछ लाओ। तुम आ गये, इतना काफी है। प्रेम अपने में पर्याप्त है। कोई और भेंट आवश्यक नहीं है। कोकिला अपनी व्यथा जिससे जताये सुन पपीहा पीर अपनी भूल जाये वह करुण उदगार तुमको दे सकूंगा प्राण ! केवल प्यार तुमको दे सकूंगा प्राप्त मणि- कंचन नहीं मैंने किया है। ध्यान तुमने कब वहां जाने दिया है आंसुओं का हार तुमको दे सकूंगा प्राण ! केवल प्यार तुमको दे सकूंगा फूल ने खिल मौन माली को दिया जो बीन ने स्वरकार को अर्पित किया जो मैं वही उपहार तुमको दे सकूंगा प्राण ! केवल प्यार तुमको दे सकूंगा आ उजेली रात कितनी बार भागी सो उजेली रात कितनी बार जागी पर छटा उसकी कभी ऐसी न छाई हास में तेरे नहाई यह जुन्हाई ओ अंधेरे-पाख क्या मुझको डराता अब प्रणय की ज्योति के मैं गीत गाता प्राण में मेरे समाई यह जुन्हाई हास में मेरे नहाई यह जुन्हाई प्राण ! केवल प्यार तुमको दे सकूंगा तुम प्रेम ले आये, सब ले आये ! तुम शून्य ले आये तो समर्पण ले आये, समाधि ले आये। कुछ और चाहिए नहीं। इससे और बड़ी कोई भेंट हो नहीं सकती है। प्रभु मंदिर यह देह री 413
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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