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________________ पिया खोलो किवाड़ पिया खोलो किवाड़! कोयल की गूंजी पुकारें। जो रो उठा, उसने तो प्रभु के द्वार पर दस्तक दे दी। उसने तो कह दियाः पिया खोलो किवाड़! पिया खोलो किवाड़! - ' रोने से ज्यादा बेहतर कोई दस्तक मंदिर के द्वार पर कभी दी ही नहीं गई है। वह तो श्रेष्ठतम दस्तक है। उससे श्रेष्ठतर फिर कुछ भी नहीं है। तो तुम अगर रो सकते हो तो प्रभु की तुम पर बड़ी कृपा है, अनंत कृपा है। आंसुओं को प्रार्थना बनने दो। कुछ और करने को नहीं है। कुछ और करने की बात ही मत उठाना। क्योंकि करने में तो कर्ता आ जायेगा। रोने में कर्ता बड़ी सरलता से पिघल जाता है। रोना तो एक तरह का पिघलना है। इसीलिए तो रोने में आदमी डरते हैं। पुरुषों ने तो रोना छोड़ ही दिया है। वे तो भूल ही गये रोने की कला। तुम्हें पता है, दुनिया में पुरुष स्त्रियों से दो गुने ज्यादा पागल होते हैं! और हर दस साल में महायुद्ध चाहिए पुरुषों को। अगर दुनिया में महायुद्ध अगर बंद हो जायें तो मैं समझता हूं पुरुष सब के सब पागल हो जायेंगे, बच ही नहीं सकते फिर वे। लड़ाई-झगड़े में निकाल लेते हैं पागलपन, दुश्मनी, दंगा-फसाद, हिंदू-मुसलमान का दंगा, गुजराती-मराठी का दंगा। कोई भी बहाना, मरने-मारने को तैयार हैं। ___ और पुरुषों को बचपन से सिखलाया जाता है। बच्चों को हम कहते हैं : 'रोना मत, मर्द रोते नहीं!' क्या पागलपन की बात है! मर्द की आंखों में उतनी ही आंसू की ग्रंथियां हैं जितनी स्त्री की आंखों में। परमात्मा ने भेद नहीं किया है। परमात्मा ने मर्द को भी रोने के लिए आंखें दी हैं, आंसू दिए हैं; नहीं तो आंसू देते ही नहीं। अगर मर्द रोते ही नहीं, मर्द को रोना ही नहीं चाहिए तो परमात्मा ने आंसू दिये ही क्यों? तो परमात्मा ने तुम्हारी आंख में आंसू न भरे होते। लेकिन उतनी ही ग्रंथियां हैं। कोई पुरुष रोने लगे तो लोग कहते हैं अरे, अरे बंद करो, क्या गैर-मर्दानी बात कर रहे हो! __ ये पागलपन की बातें हैं। इनके कारण आदमी जड़ हो गया है। स्त्रियां अब भी थोड़ी बेहतर हालत में हैं। रो सकती हैं, कोई उन्हें रोकता नहीं। कहते हैं : स्त्रियां हैं, चलो रोने दो! स्त्रियां सौभाग्यशाली हैं इस दृष्टि से। और सब तो उनसे छिन गया है, लेकिन आंसू कम से कम उनके पास हैं। यह उनकी बड़ी धरोहर है। घबड़ाओ मत। कुछ और करने की जरूरत नहीं है। रोओ और पुकारो! पुकारो और रोओ! धीरे-धीरे पुकार भी बंद हो जाये, फिर आंसू ही पुकारेंगे। पुकारने वाला भी खो जाये, फिर आंसू ही एकमात्र बात रह जायेगी। और तुम पाओगे इन्हीं आंसुओं से मंजिल करीब आने लगी। पंथ जीवन का, चुनौती दे रहा है हर कदम पर आखिरी मंजिल नहीं होती कहीं भी दृष्टिगोचर धूल से लद, स्वेद से सिंच, हो गई है देह भारी कौन-सा विश्वास मुझको खींचता जाता निरंतर प्रभु-मंदिर यह देह री 411
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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