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________________ के सामने भीड़ लगी है और एक आदमी ने कुत्ते की दोनों टांगें पकड़ रखी हैं, वह उसको पछाड़ने को खड़ा है और चिल्ला रहा है कि इसको मार ही डालूंगा, इसने मुझे काटा। एक पुलिस वाले ने भी कहा कि अच्छा है, मार ही डालिए; हम पुलिस वालों को भी बहुत भौंकता है। ___कुत्ते कुछ अजीब ही होते हैं। पुलिस वाले, पोस्टमैन, संन्यासी, जहां भी यूनीफार्म देखा कि वे भौंके। . ...मार ही डालो इसको। मगर दूसरे पुलिस वाले ने उसके कान में कहा कि ठहरो, यह इंस्पेक्टर साहिब का कुत्ता मालूम होता है। बस बात बदल गई, वह आदमी एकदम झपट पड़ा। वह पुलिस वाला उस आदमी को पकड़ लिया, कहा कि तुम क्या हंगामा मचा रहे हो सड़क पर, तमाशा कर रहे हो? छोड़ो, जानते हो यह कुत्ता कौन है, किसका है? और जल्दी से उसने कुत्ते को अपने कंधे में ले लिया और पुचकारने लगा। बात बदल गई और उसने दूसरे पुलिस वाले से कहा कि पकड़ो इस आदमी को, हवालात ले चलो। बलवा करवायेगा! __ मगर दूसरे ने कहा कि भाई, यह कुत्ता लगता तो वैसा है लेकिन है नहीं। उसने तत्क्षण कुत्ता पटक दिया। और उसने कहा, स्नान करना पड़ेगा। पहले क्यों ऐसा कह दिया कि कुत्ता वही है। और उस आदमी से कहा, पकड़ इस कुत्ते को, मार ही डाल इसको। ऐसे कहानी चलती है। वह फिर कह देता है पुलिस वाला कि भई मैं पक्का नहीं कह सकता, क्योंकि लगता तो बिलकुल ऐसे ही है इंस्पेक्टर साहिब का कुत्ता, अपन झंझट में न पड़ें। फिर कहानी • बदल जाती है। तुम्हारे विक्षेप तुम्हारी धारणायें हैं। तुम मान लेते हो तो विक्षेप। शूद्र हो गया कोई, कोई मुसलमान हो गया, कोई हिंदू हो गया, कोई ब्राह्मण हो गया। फिर हर चीज से उपद्रव होने लगा। तुम्हारी धारणायें छूट जायें, तुम शांत हो जाओ, निर्धारणा को उपलब्ध हो जाओ, फिर कैसा विक्षेप! फिर तो पास में कोई चिल्लाता भी रहे, शोरगुल भी मचाये तो भी शोरगुल तुम्हारे भीतर कोई तनाव पैदा नहीं करता। शोरगुल भी तुम सुन लोगे। यह भी स्वीकार है। - स्वीकार में एक क्रांति घट जाती है। रूप बदल जाता है। ___'जो लोगों की तरह बरतता हुआ भी लोगों से भिन्न है, वह धीरपुरुष न अपनी समाधि को, न विक्षेप को और न दूषण को ही देखता है।' न समाधिं न विक्षेपं न लेपं स्वस्थ पश्यति। और जीवन में उसके ऊपर कोई भी चीज लेप नहीं बनती। कोई चीज उसे लिप्त नहीं कर पाती। तुम उसे काली कोठरी में से भी भेज दे सकते हो, तो भी वह साफ-सुथरा का साफ-सुथरा बाहर आ जायेगा। और तुम कितने ही साफ-सुथरे सफेद वस्त्र पहने बैठे रहो, इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता। मल्ला नसरुद्दीन ने राह पर एक संदर स्त्री को देख कर एकदम उसे धक्का मार दिया। वह स्त्री नाराज हो गई। नये जमाने की स्त्री, उसने मुल्ला का एकदम हाथ पकड़ लिया और कहा कि शर्म नहीं आती, बाल सफेद हो गये! मुल्ला ने कहाः अरे बाल सफेद हो गये तो क्या हुआ, दिल तो अभी भी काला का काला है! कपड़े कितने ही सफेद पहन लो, इससे क्या हो सकता है; दिल काला है तो काला है। मुल्ला ने साक्षी स्वाद है संन्यास का , 377 -
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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