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________________ मार दिया। नाराज हो गये कि तूने मेरा स्नान खराब कर दिया। शूद्र हो कर ! खयाल नहीं रखता कि ब्राह्मण को देख कर चले ? मैं उस शूद्र ने बड़ी अदभुत बात कही। उस शूद्र ने कहा : एक बात पूछना चाहता हूं। आप कहते हैं संसार माया, तो देह माया है, झूठ है; है नहीं, भासती है। तो जो देह भासती है उसके कारण आप अपवित्र हो गये? या तो ऐसा हुआ, या फिर मेरी आत्मा शूद्र है और आपकी आत्मा ब्राह्मण है। तो फिर आत्मा में भी शूद्र और ब्राह्मण हैं। तो आत्मा फिर मेरी ब्रह्म कैसे होगी? तो फिर आत्मा भी निर्विकार नहीं है। तो या तो मेरी देह को छूने के कारण आप भ्रष्ट हो गये - देह जो कि है ही नहीं आपके हिसाब से या फिर मेरी आत्मा ही भ्रष्ट है। आप मुझे कह दें। शंकर को कहते हैं बोध हुआ । झुक कर चरण छू लिए और कहा कि मैं अब तक शब्दों के जाल में ही खोया रहा। यह विक्षेप कि शूद्र ने मुझे छू दिया, तुम्हारी धारणा के कारण है। एक दफा मैं ट्रेन में सवार हुआ। बंबई से बैठा । तो मेरे डब्बे में एक ही सज्जन और थे। हु लोग मुझे छोड़ने आये थे तो उन्होंने सोचा जरूर कोई महात्मा हैं । तो भारत में तो ऐसा है कि महात्मा हो कि फिर पैर में गिरना । तो जैसे ही मैं दरवाजा बंद करके, गाड़ी चली, भीतर आया, वे. एकदम साष्टांग मेरे पैर में गिर पड़े। मैंने उनसे पूछा, भाई पहले पूछ तो लेते कि मैं कौन हूं। वे बोले, क्या मतलब ? वे एकदम चौंक कर उठ आये। मैंने कहा, मैं मुसलमान हूं। वे बोले, धत तेरे की ! पहले क्यों न कहा? मैंने कहा कि तुमने मौका ही नहीं दिया, तुम एकदम पैर छू लिए। तुम मौका भी तो देते, पूछ तो लेते। फिर उन्हें कुछ शक हुआ, मेरे चेहरे की तरफ देखा कि नहीं-नहीं। और मैंने कहा कि तुम अपने को समझाना चाहो तो तुम्हारी मर्जी, हालांकि तुमने छू लिए पैर । वे बोले, मैं ब्राह्मण हूं और मैं तो यही समझा कि कोई महात्मा हैं, इतने लोग छोड़ने आये थे। मैंने कहा, ये कोई लोग भले लोग नहीं थे। ये सब बंबई के सटोरिया, स्मगलर इस तरह के लोग हैं। ये कोई सज्जन नहीं हैं। तुम बड़ी भूल में पड़ गये । दोनों हम बैठे हैं एक ही कमरे में, वे बार-बार मेरे चेहरे की तरफ देखें गौर पता लगायें कि आदमी मुसलमान है कि हिंदू । थोड़ी देर बाद बोले कि नहीं-नहीं, मालूम तो आप मुसलमान नहीं पड़ते। मैंने कहा, भई तुम्हारी मर्जी, तुम्हें समझाना हो तुम समझा लो। कहो तो मैं लिख कर दे दूं कि मैं मुसलमान नहीं हूं, लेकिन अब मैं हूं तो हूं। तुमने भूल तो कर ली। जब उनको बहुत बेचैन देखा तो मैंने कहा, अरे मजाक कर रहा हूं। उन्होंने फिर मेरे पैर छूए कि अरे, आप भी, ऐसी मजाक की जाती है? मैंने कहा, मैं अभी भी मजाक कर रहा हूं। वह तो टिकिट कलक्टर आया तो उससे कहा कि मेरा कमरा बदल दो, मैं दूसरे कमरे में जाना चाहता हूं। और जाते वक्त ऐसे देखते गये कि यह आदमी पागल है या क्या मामला ! तुम्हारी धारणा! अगर मैं मुसलमान हूं, विक्षेप हो गया। अब मैं मैं ही हूं, चाहे मुसलमान कहो चाहे हिंदू कहो। अगर मैं नहीं हूं मुसलमान, फिर पैर छू लिए, फिर ठीक हो गई बात। तुर्गनेव की एक बड़ी प्रसिद्ध कहानी है कि दो पुलिस वाले एक रास्ते से गुजर रहे हैं, एक होटल 376 अष्टावक्र: महागीता भाग-4
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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