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________________ नसरुद्दीन जिंदाबाद! और लोग बड़ी फूलमालायें ले आये और उन्होंने कहा : गजब कर दिया! मुल्ला ने कहा: बंद करो बकवास! पहले यह बताओ, मुझे धक्का किसने दिया? चमड़ी उधेड़ दूंगा जिसने धक्का दिया है, पता भर चल जाये। ऐसा तम्हारा संन्यास है कोई धक्का दे दे। तुम संसार से हटो भी, तो खुद नहीं हटते, इज्जत से नहीं हटते, बेइज्जती से। जब तक काफी जूते न पड़ जायें, तुम हटते ही नहीं। कहावत है : सौ सौ जूते खायें, तमाशा घुस कर देखें। कौन फिक्र करता है, तमाशा जब हो रहा हो तो कितने ही जूते पड़ जायें! संसार का इतना मोह क्या है? पाया क्या है? क्यों इतने जोर से पकड़े हुए हो? अगर इसके विश्लेषण में जाओगे तो तुम्हें दिखाई पड़ेगा : इतने जोर से इसीलिए पकड़े हुए हो कि कुछ भी नहीं पाया है। तुम्हारा जीवन खाली है। आशा में पकड़े हुए हो, शायद संसार से कुछ मिल जाये, आज नहीं कल, कल नहीं परसों। अब तक तो नहीं मिला, कल शायद मिल जाये! पकड़े हो। छोड़ते नहीं। देखो जरा गौर से, तुम रेत को निचोड़ कर तेल निकालना चाहते हो, यह निकलेगा नहीं! सब समय व्यर्थ जायेगा। कभी कोई नहीं जीत पाया इस तरह। कितने मनुष्य पृथ्वी पर रहे हैं! अरबों-खरबों आदमी तुमसे पहले आ चुके हैं और यही सब कर चुके हैं, यही तमाशा देख चुके हैं। और फिर, खाली हाथ वापिस विदा हो गये हैं। इसके पहले कि तुम्हारा भी विदा का क्षण आ जाये, तुम स्वेच्छा से जाग उठो। जो मौत करेगी. वह जिस दिन तम स्वयं करने को राजी हो जाते हो उसी दिन सत्य उपलब्ध होना शुरू हो जाता है। मौत तुमसे छीनेगी; तुम खुद ही कह दोः इसमें कुछ है नहीं, मैं पकड़ता नहीं। फिर मैं तुमसे यह भी नहीं कह रहा हूं, न अष्टावक्र कह रहे हैं कि तुम भाग जाओ जंगल-पहाड़ों पर। क्योंकि भगोड़ापन कोई ज्ञानी नहीं सिखायेगा। जो भाग कर भी गये हैं, जब उन्हें ज्ञान उपलब्ध हो गया तो वापिस लौट आये। बुद्ध और महावीर भाग कर गये थे, लेकिन जब ज्ञान उपलब्ध हुआ तब समझ में आ गई बात, वापिस लौट आये। रवींद्रनाथ की एक बड़ी प्यारी कविता है। बुद्ध जब वापिस लौटते हैं छः वर्ष के बाद और उनकी पत्नी से मिलन होता है, यशोधरा मिलने आती है, तो यशोधरा उनसे एक सवाल पूछती है कि मुझे सिर्फ एक सवाल पूछना है; इन वर्षों में जब आप मुझे छोड़ कर चले गये तो एक ही सवाल मुझे पीड़ित करता रहा है, मैं उसके लिए ही जीवित रही हूं, वही पूछ लूं, तो बस। बुद्ध ने कहा कि क्या सवाल है तेरा? यशोधरा ने कहा : मुझे यही पूछना है कि जो तुम्हें जंगल में जा कर मिला, क्या यहीं इसी महल में रहते हुए नहीं मिल सकता था? रवींद्रनाथ बुद्ध के भागने के पक्ष में नहीं थे। भागने के पक्ष में कोई भी नहीं हो सकता। इसलिए उन्होंने यह कविता लिखी है और यशोधरा से अपना मंतव्य कहलवा दिया है। पूछती है यशोधरा : अगर तुम, जंगल में जो तुमने पाया, माना कि पाया जंगल में, अगर तुम यहीं रहते तो पा सकते थे या नहीं? और रवींद्रनाथ कहते हैं कि बुद्ध चुप रह गये। क्या कहें? अगर यह कहें कि यहीं रह कर मिल सकता था तो यशोधरा कहेगी, क्या पागलपन किया, फिर किसलिए भागे-दौड़े? और यह तो कह ही नहीं सकते कि यहां नहीं मिल सकता था जो वहां मिला। क्योंकि जो वहां मिला वह कहीं भी मिल 364 अष्टावक्र: महागीता भाग-4
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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