SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 379
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रथ पर सवार हो जाओगे - इतना ही फर्क है। इस फर्क को मैं फिर दोहरा दूं। अभी तुम ऐसी हालत में हो, जैसे कि चाक से बंधे और सड़क पर घसिट रहे हो; सारी धूल-धवांस तुम्हारे ऊपर पड़ रही M है; हड्डी -पसली टूटी जा रही है; जीर्ण-जर्जर हुए जा रहे हो - चक्के से बंधे हो । रथ तो चलता रहेगा। सूरज तो उगेगा। चांद तो आयेंगे। तारे तो चलेंगे। पृथ्वी तो हरी होगी। पक्षी तो गीत गायेंगे। प्रेम तो होगा। सत्य की वर्षा तो होती रहेगी। अमृत तो उगेगा। यह सब तो होगा। लेकिन तुम रथ पर सवार होओगे सम्राट की तरह — रथ के चक्के से गुलाम की तरह बंधे हुए नहीं । घबड़ाओ मत। जागने में कुछ भी खोता नहीं । वही खोता है जो कभी था ही नहीं और तुमने सोच रखा था कि है। जागने में मिलता ही मिलता है। और वही मिलता है जो तुम्हारे पास ही था, लेकिन तुमने कभी अपनी गांठ ही न खोली, तुमने कभी भीतर झांका ही नहीं । तो मैं अपने संन्यासियों को निरंतर कहता हूं : मैं तुम्हें वही देना चाहता हूं जो तुम्हारे पास है और तुमसे वही ले लेना चाहता हूं जो तुम्हारे पास नहीं है। मुझसे कोई पूछता है : हम संन्यास ले रहे हैं तो अब हम क्या त्यागें ? तो मैं उनसे कहता हूं : वही त्याग दो जो तुम्हारे पास नहीं है। वही त्याग दो जो तुम्हारे पास नहीं है। जो तुमने मान रखा है कि है और है नहीं। अहंकार है नहीं जरा भी ; खोजने जाओगे तो पाओगे नहीं। जितना खोजोगे उतना ही कम पाओगे। ठीक-ठीक खोजोगे, बिलकुल नहीं पाओगे । भीतर आंख बंद करके जाओगे पता लगाने कि अहंकार कहां है, तो कहीं भी जरा-सी भी छाया न मिलेगी। पर है। और उसी के लिए हम जी रहे और मर रहे और मांर रहे हैं। मान रखा है कि यही हूं मैं । 'मेरा-तेरा' झूठ है। यहां कुछ भी मेरा नहीं है और कुछ भी तेरा नहीं है । सब था, हम नहीं थे; सब होगा, हम नहीं हो जायेंगे । यहां 'मेरा-तेरा' झूठ है । सब है प्रभु का। तो जहां तुमने कहा मेरा वहां तुमने झूठ खड़ा कर दिया। झूठ जितने तुम खड़े कर लेते हो उतना ही सत्य से मिलन असंभव हो जाता है। तुम अगर कभी सत्य की तरफ उन्मुख भी होते हो तो सत्य की खोज के कारण नहीं। किसी की पत्नी मर गई, वह आ जाता है कि अब क्या रखा संसार में, अब तो मुझे संन्यास दे दें! मैं कहता हूं : थोड़ी देर रुक, अभी इस दुख में संन्यास मत ले। क्योंकि दो महीने बाद जब दुख चला जायेगा तो फिर तू पत्नी की तलाश करने लगेगा। यह तो दुखावेश है। इस आवेश में संन्यास मतले । किसी का दिवाला निकल जाता है; वह कहता है अब तो संन्यास लेना है। अभी एक क्षण पहले तक संसार-चक्र को चलाने का आग्रह था; अब दिवाला निकल गया तो एकदम संसार-चक्र को बंद कर देने की इच्छा हो रही है। लेकिन अभी खबर आ जाये कि घर में खजाना दबा पड़ा था, पिता रख गये थे, वह मिल गया, तो यह सोचेगा कि छोड़ो, अभी कहां संन्यास की बात करनी, फिर देखेंगे ! तो जब हारते हो और टूटते हो, तभी तुम संन्यास की सोचते हो, संसार से हटने की सोचते हो। यह कोई समझपूर्वक बात नहीं हो रही । तुम मैं सुना, एक जहाज पर मुल्ला नसरुद्दीन यात्रा कर रहा था। एक बच्चा गिर पड़ा, रेलिंग से झुक रहा था, गिर पड़ा। कौन कूदे समुद्र में लोग खड़े होकर देखने लगे और तभी अचानक लोगों ने देखा कि मुल्ला कूदा और बच्चे को निकाल कर बाहर आया । जयजयकार होने लगा : मुल्ला साक्षी स्वाद है संन्यास का 363
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy