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________________ कि प्रभु है। यह तुम्हारा चैतन्य, यह तुम्हारा तर्क, ये तुम्हारे विचार, यह तुम्हारी प्रणाली—इस बात का सबूत है कि परमात्मा है। जब फूल लगते हैं तो सबूत है कि वृक्ष होगा। फूल लाख उपाय करें, वृक्ष को खंडित न कर पायेंगे। उनका होना ही वृक्ष का सबूत हो जाता है। फूल लाख गवाही दें अदालत में जा कर कि वृक्ष नहीं होते हैं, लेकिन फूलों की गवाही ही बता देगी कि वृक्ष होते हैं, अन्यथा फूल कहां से आयेंगे?. रामकृष्ण ने कहाः मैं तो गंवार हूं, मेरे पास तो कोई प्रतिभा का फूल नहीं है; तुम्हारे पास तो प्रतिभा का कमल है। मैं हजार-हजार धन्यवाद से भरा हूं। इसलिए उठ-उठ कर तुम्हें गले लगता हूं कि हे प्रभु, तूने खूब किया, केशवचंद्र को मेरे पास भेजा! तेरी एक झलक और मिली! तुझसे मेरी एक पहचान और हुई! एक नये द्वार से तुझे फिर देखा! अब तो कोई लाख उपाय करे केशव, तुम्हें देख लिया, अब तो कभी मान न सकूँगा कि ईश्वर नहीं है। केशवचंद्र ने अपने स्मरणों में लिखा है कि जिस एक आदमी से मैं हार गया, वे रामकृष्ण हैं। इस आदमी से जीतने का उपाय न था। उस रात मैं सो न सका और बार-बार सोचने लगा, जरूर इस आदमी को कोई अनुभव हुआ है। कोई ऐसा प्रगाढ़ अनुभव हुआ है कि कोई तर्क उसे डगमगाते नहीं। इतना प्रगाढ़ अनुभव हुआ है कि तर्कों के माध्यम से भी, जो विपरीत तर्क हैं उनसे भी वही अनुभव सिद्ध होता है। नहीं, इस आदमी के चरणों में बैठना होगा। इस आदमी से सीखना होगा। इसे जो दिखाई पड़ा है वह मुझे भी देखना होगा। इसके पास आंख है, मेरे पास तर्क है। तर्क काफी नहीं। तर्क से कब किसी की भूख मिटी है! और तर्क से कब किसका कंठ तृप्त हुआ! .... निश्चित जानने का अर्थ है रामकृष्ण की भांति जानना। निश्चित जानने का अर्थ है-विश्वास नहीं; अनुभव से आती है जो श्रद्धा, वही। और जिसने विश्वास बना लिया, उसके भीतर श्रद्धा पैदा होने में बाधा पड़ जाती है। इसलिए उधार को तो काटो। बासे को तो हटाओ। पराये को तो त्यागो। कोई चिंता न करो। अगर सारे विश्वास हाथ से छूट जायें तो घबड़ाओ मत, क्योंकि उनके हाथ में होने से भी कुछ लाभ नहीं है। जाने दो। तुम उस शून्य में खड़े हो जाओ जहां कोई विश्वास नहीं होता, कोई विचार नहीं होता। और वहीं से बजेगी धुन। वहीं से उठेगा एक नया स्वर। उसी शून्य से व्याप्त होता है कुछ अनुभव जो तुम्हें घेर लेता है। उसी अनुभव में जाना जाता है। आत्मा ब्रह्मेति निश्चित्य... । आत्मा ब्रह्म है, ऐसा उस अनुभव में जाना जाता है जहां तुम्हारी सीमाएं गिर जाती हैं और असीम और तुम्हारे बीच कोई भेद-रेखा नहीं रह जाती। आत्मा ब्रह्म है, इसका अर्थ हुआ ः बूंद सागर है। लेकिन यह कैसे बूंद जानेगी? बूंद गिरे नहीं तो जान सकेगी? बूंद सागर में गिरे तो ही जानेगी। बूंद कितनी ही पंडित हो जाये. महापंडित हो जाये: लेकिन जिस बंद ने सागर में गिर कर नहीं देखा, उसे कुछ पता नहीं चलेगा कि बूंद सागर है। बूंद तो जब मिटती है तभी पता चलता है कि सागर है। तुम मिटते हो तभी ब्रह्म का पता चलता है। तुम तिरोहित हो जाते हो, तो ही ब्रह्म मौजूद होता है। तुम्हारी गैर-मौजूदगी उसकी मौजूदगी है। तुम्हारी मौजूदगी उसकी गैर-मौजूदगी है। तुम्हारे होने में ही ब्रह्म 'नहीं' हो गया है; तुम्हारे बिखरते ही पुनः हो जायेगा। तथाता का सूत्र--सेतु है 309
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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