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________________ ठीक था। मगर स्त्री ही न निकली। कोई साधु महाराज हैं। इन साधुओं के कारण भी बड़ी झंझट है, वह कहने लगा। मैंने कहा, अब साधु का इसमें क्या कुसूर है ? तुम्हारी धारणा तुम आरोपित कर लेते हो। साधु को तो बेचारे को पता भी नहीं है। तुम्हारे लिए उसने यह आयोजन भी नहीं किया है। इस संसार में तुम्हारी जो वासना है, उसका प्रक्षेपण होता रहता है। यह संसार तुम्हारी वासना, तुम्हारी भावना का प्रक्षेपणं है। जिस दिन तुम भावना - शून्य हो जाते हो, उसी दिन दिखाई पड़ता है वह, जो है। तब तुम बड़े चकित होओगे । अनंत अनंत चीजें जो कल तक दिखाई पड़ती थीं, एकदम खो गयीं; अब दिखाई ही नहीं पड़तीं । एक महिला ने संन्यास लिया। एक महिला जैसी होनी चाहिए वैसी महिला। उनके घर मैं रुकता था कभी-कभी। और नहीं तो कम से कम तीन सौ साड़ियां तो उसकी अलमारी में होंगी ही। बहुत दिन तक वह रुकती रही। बार-बार कहती कि और तो मुझे कोई अड़चन नहीं है, साड़ियों का क्या होगा ? मैंने उससे कहा कि देख, अगर यही भाव रहा तो मर कर साड़ी होगी। साड़ियों का क्या होगा ? साड़ियों का जो होना होगा, होगा । तू नहीं थी तब साड़ियों का कुछ हो रहा था ? तू नहीं होगी तब भी साड़ियों का कुछ होगा। बांट दे। आखिर उसने हिम्मत कर ली, संन्यास ले लिया । अब तो गैरिक वस्त्र बचा। अब इतनी साड़ियों का कोई उपाय न रहा। कोई तीन महीने बाद उसने मुझे आ कर कहा कि एक बड़ी हैरानी की बात है। पहले मैं बाजार से निकलती थी तो मुझे हजार कपड़े की दूकानें दिखाई पड़ती थीं, अब नहीं दिखाई पड़तीं। पहले कपड़े की दूकान दिखाई पड़ जाती तो मैं फिर जा ही नहीं सकती थी। हजार काम छोड़ कर भीतर जाती थी। जब तक देख न लूं कि कोई नयी साड़ी तो नहीं आ गयी, कोई नया कपड़ा तो नहीं आ गया...। लेकिन अब अचानक कुछ ऐसा हो गया है। मैंने कहा, अचानक नहीं हो गया; कारण से हुआ है। अब गैरिक वस्त्र ही पहनना है तो और वस्त्र पहनने का भाव गिर गया। बचा नहीं भाव तो उसकी खोज बंद हो गयी। खोज बंद हो गयी तो अब कपड़े की दूकान में क्या अर्थ है ? चमार को बिठा दो सड़क के किनारे, वह सिर्फ तुम्हारे जूते देखता है; वह तुम्हारा चेहरा देखा ही नहीं । उसको सारी दुनिया जूतों से भरी है। जूते चल रहे हैं; जूते आ रहे हैं, जूते जा रहे हैं। अच्छे जूते, बुरे जूते, गरीब जूते, अमीर जूते, पढ़े-लिखे, गैर- पढ़े-लिखे, सब जूते ! उसे कुछ और दिखाई नहीं पड़ता । T मुल्ला नसरुद्दीन पकड़ लिया गया; हवालात में बंद कर दिया गया । मैं गया उसे देखने। मैंने कहाः बड़े मियां, यह मामला क्या है? कैसे पकड़े गये ? उसने कहा, सर्दी-जुकाम के कारण। मैंने कहाः सर्दी-जुकाम के कारण ? सर्दी-जुकाम से तो मैं परेशान हूं; मुझे पकड़ा जाना था। तुम्हें किसने पकड़ा? उसने कहा कि अब समझो बात पूरी । एक आदमी की जेब में मैंने हाथ डाला; सर्दी-जुकाम के कारण पड़ाक से छींक आ गयी । धरपकड़ा; वहीं पकड़ा गया। चोरी के कारण नहीं पकड़ा गया है वह ! सर्दी-जुकाम के कारण। आदमी अपने हिसाब से कारण भी खोजता है । कारण भी सत्य नहीं होते। कारण में भी और कारण होते हैं। कारण के भीतर कारण होते हैं। तुम जो कारण बताते हो, वह सच नहीं होता है । तुम परमात्मा हमारा स्वभावसिद्ध अधिकार है 271
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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