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________________ फिर इसके अनुसार जीवन को बनाएंगे। यह टाइम-टेबिल बन जाएगा, लेकिन यात्रा कभी न होगी। एक गांव में रामलीला हो रही थी। लंका से लौटते हैं राम, सीता, हनमान तो उतरता है पुष्पक विमान। रामलीला का विमान तो एक रस्सी से बांध कर एक डोला नीचे उतारा हुआ था। वे उसमें बैठते और रस्सी खींच ली जाती। अब ऊपर जो चढ़ा था, अंधेरे में बैठा हुआ, उसको कुछ ठीक समय का बोध न रहा। इसके पहले कि रामचंद्र जी चढ़ते, उसने डोला खींच लिया। तो खड़े रह गये रामचंद्र जी, लक्ष्मण जी, हनुमान जी। हनुमान जी ने थोड़ी उछल-कूद भी की, मगर फिर भी न पहुंच पाये। डोला एकदम चला ही गया। छोटे-छोटे बच्चे थे गांव के, जो बने थे राम-लक्ष्मण। तो लक्ष्मण ने पूछा अपने भाई रामचंद्र जी से कि बड़े भइया, अगर आपके सूटकेस में टाइम-टेबिल हो तो देख कर बतायें, दूसरा हवाई जहाज कब छूटेगा? कुछ लोग तो छिपाये हुए हैं टाइम-टेबिल सब जगह। टाइम-टेबिल का भी अध्ययन लोग ऐसे करते हैं जैसे कुरान-बाइबिल का कर रहे हों। ___ मैं ट्रेन में बहुत दिनों तक सफर करता था तो मैं देखता था, लोग टाइम-टेबिल ही लिए बैठे हैं, उसका अध्ययन कर रहे हैं! मैं कभी कहता भी कि आप घंटों से टाइम-टेबिल का अध्ययन कर रहे हैं; इसमें अध्ययन करने जैसा है भी क्या? वे कहते, तो बैठे-बैठे क्या करें? तो टाइम-टेबिल का ही अध्ययन कर रहे हैं। योजना ही बना रहे होंगे मन में कुछ; ट्रेनों का इंतजाम बिठा रहे होंगे कुछ। तुम अपने जीवन को गौर से देखना। कहीं तुम्हारा जीवन समय-सारिणी का अध्ययन ही तो नहीं गया है? धन होगा, पद होगा, प्रतिष्ठा होगी, बड़ा मकान होगा, बड़ी कार होगी, तब तुम सुख से रहोगे? तो तुम कभी सुख से न रहोगे। सुख से रहना हो तो अभी, अन्यथा कभी नहीं। 'सारे धन कमा कर मनुष्य अतिशय भोगों को पाता है, लेकिन सबके त्याग के बिना सुखी नहीं होता।' और ध्यान रखना, अष्टावक्र के त्याग का यह अर्थ नहीं है कि तुम सब छोड़ कर जंगल भाग जाओ। क्योंकि वह जो सब छोड़ कर जंगल भागता है, उसकी भी दृष्टि अभी भ्रांत है। वह सोच रहा है कि अब जंगल पहुंच कर सुखी होऊंगा। फिर धन की यात्रा शुरू हो गयी। अष्टावक्र का सूत्र यही है : तत्क्षण, अभी, यहीं, जहां हो वहीं सुखी हो जाओ! तुम त्याग भी धन की ही भाषा में करते हो। एक आदमी त्याग करता है तो वह सोचता है, भीतर गणित बिठाता है : इतना त्याग करेंगे तो कितना मोक्ष मिलेगा? वहां भी सौदा है। इतने उपवास करेंगे तो स्वर्ग की किस सीढ़ी पर पहुंचेंगे? कितने उपवास करने से और कितना शरीर को गलाने-तपाने से सिद्धशिला पर विराजमान होंगे? हिसाब लगा रहा है। दूकानदार ही है यह। इसकी दूकानदारी बंद न हुई। इसने दूकानदारी नये आयाम में फैला दी। नहीं, धार्मिक व्यक्ति वही है जो कहता है : सुख पाने के लिए कोई जरूरत नहीं है। सुख हमारा स्वभाव है। उसे कल नहीं पाना है; अभी उपलब्ध है। अभी इसी क्षण उसमें हम डूब सकते हैं, लीन हो सकते हैं। _ 'कर्तव्य से पैदा हुए दुखरूप सूर्य के ताप से जला है अंतर्मन जिसका, ऐसे पुरुष को शांतिरूपी अमृतधारा की वर्षा के बिना सुख कहां है?' 268 अष्टावक्र: महागीता भाग-4
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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