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________________ नहीं होता कि मैं आपको बच्चों के साथ बगीचे में देखू। कभी आपको बगीचे में भी नहीं देखता। बगीचा बहुत सुंदर है, लेकिन आप कभी वहां दिखाई नहीं पड़ते। मामला क्या है ? उन्होंने कहा कि मामला यह है : अगर बच्चे से जरा ही मीठा बोलो, वह फौरन रुपये की मांग कर देता है। मीठा बोले नहीं कि फंसे। वह जेब में हाथ डालता है। पत्नी से जरा ही मीठा बोलो कि समझो कोई हार खरीदना, कि कोई गहना बाजार में आ गया है, कि नयी साड़ी आ गयी। तो धीरे-धीरे मैंने यह देख लिया कि मुस्कुराहट तो बड़ी कीमती है, महंगी पड़ती है। तो मैं अपने को बिलकुल दूर रखता हूं; मैं बातचीत में पड़ता ही नहीं। क्योंकि बातचीत में पड़ने का मतलब उलझाव है। अब यह आदमी धन कमा रहा है, लेकिन प्रेम इसके जीवन से खो गया। जो अपने बेटे से बोल नहीं सकता पास बैठ कर, घड़ी दो घड़ी बाप और बेटे के बीच चर्चा नहीं हो सकती दिल खोल कर; क्योंकि डर है इसे कि बेटा जेब में हाथ डाल देगा। जो अपनी पत्नी के पास बैठ कर बात नहीं करता, भयभीत है कि जब भी कुछ कहो महंगा पड़ जाता है, जो हमेशा सख्त और तना हुआ रहता है-यह इसकी सुरक्षा का उपाय है। धन तो इकट्ठा हो जाएगा। लेकिन जिस जीवन से प्रेम खो गया, वहां सुख कहां? ___ तो हम करीब-करीब साधन तो इकट्ठे कर लेते हैं, साध्य खो जाता है। और फिर जब सुख नहीं मिलता तो लोग बड़े हैरान होते हैं। वे कहते हैं, सब तो है, और सुख क्यों नहीं? सुख का कोई संबंध धन से नहीं है; सुख का संबंध जीवन की किन्हीं और गहराइयों से है। तुम्हारी क्षमताएं प्रखर होनी चाहिए; तुम्हारा बोध गहरा होना चाहिए। जीने की कला आनी चाहिए। तब कभी रूखी रोटी में भी इतना स्वाद हो सकता है। नहीं तो मिष्ठान्न भी. बहमल्य से बहमल्य भोजन भी व्यर्थ है। कभी रूखी-सूखी रोटी भी ऐसी तृप्ति दे सकती है, लेकिन तृप्ति की कला आनी चाहिए। वह बड़ी और बात है। धन के इकट्ठे करने से उसका कोई संबंध नहीं है। अक्सर तो मैं देखता हूं कि धनी अविकसित रह जाता है। उसके जीवन की कलियां खिल नहीं पातीं, पंखुड़ियां खिल नहीं पातीं। एक ही दिशा में दौड़ने के कारण वह करीब-करीब और सब दिशाओं के प्रति अंधा हो जाता है। वह हर चीज में धन ही देखता है। मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं कि ध्यान तो करें, लेकिन ध्यान से फायदा क्या है? सुन रहे हैं उनका प्रश्न! वे सोचते हैं, ध्यान से भी कुछ बैंक-बैलेंस बढ़े। फायदा, लाभ, इससे होगा क्या? उनके जीवन में ऐसी कोई चीज नहीं रह जाती जो वे स्वांतः सुखाय कर सकें, जो वे कह सकें कि सुख के लिए कर रहे हैं। वे पूछते हैं नाचने से फायदा क्या है? अब नाचने से फायदा क्या? पक्षी अगर पूछने लगें, गीत गुनगुनाने से फायदा क्या, तो सारी दुनिया सूनी हो जाये। मगर रोज उठ आते हैं, सूरज के स्वागत में नाचते हैं, गाते हैं, आनंदित हैं, सुखी हैं। धन बिलकुल नहीं है पक्षियों के पास, लेकिन सुख है। वृक्ष फूले चले जाते हैं। कोई वृक्ष पूछता ही नहीं। अभी तक कोई अर्थशास्त्री वृक्षों में पैदा ही नहीं हुआ, जो उनको समझाये कि क्यों रे नासमझो, व्यर्थ फूले चले जा रहे हो, फायदा क्या? एक बार वक्षों को कोई यह खयाल डाल दे उनके दिमाग में कि फायदा कुछ भी नहीं है फूलने से, फायदा क्या है, तो वृक्ष फूलने बंद हो जाएं। चांद-तारे रुक जायें-फायदा क्या? सूरज ठहर जाये—यह रोशनी बरसाने से फायदा क्या है? 266 अष्टावक्र: महागीता भाग-4
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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