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________________ शैय्या नहीं है? उन्होंने कहा, अच्छी शैय्या तो है; इससे अच्छी और क्या हो सकती है! 'तुम्हारे पास कमी क्या है ? न बेटा है न बेटी है! और धन बहुत है।' तुमने देखा कि अक्सर धनियों को बेटे-बेटी भी गोद लेने पड़ते हैं! जीवन-ऊर्जा इस तरह विकृत हो जाती है, जीवन-ऊर्जा इस तरह नष्ट हो जाती है! धन इकट्ठे करने में लग गयी तो अब बेटा पैदा करना मुश्किल हो जाता है। खूब धन कमा लिया है। अब नींद में अड़चन क्या है? सो क्यों नहीं जाते? और उन्होंने धन अपने ही हाथ से कमाया; बपौती से नहीं मिला है। और मैंने कहा, कमाया किसलिए इतना अगर नींद गंवा दी? उन्होंने कहा, मैं यही सोचता था कमाई की दौड़ में कि एक दिन जब सब ठीक हो जाएगा! चलो, कुछ दिन न सोये तो चलेगा। धीरे-धीरे न सोना आदत का हिस्सा हो गया। चिंताएं इतनी हैं भाग-दौड़ की, अब हालांकि चिंता का कोई कारण नहीं है, लेकिन अब पुरानी आदत पड़ गयी। अब घाव में हाथ डाल कर आदमी पुराने घाव को ही उघाड़ता रहता है। कुछ न बचे चिंता को, तो भी मस्तिष्क चलता रहता है, मशीन चलती रहती है। अब वह चुप नहीं होता मस्तिष्क। पचास साल तक निरंतर जिस तरह दौड़ाया, वैसी दौड़ने की आदत हो गयी। अब वह विक्षिप्त हो गया है। तो अच्छी शैय्या है, लेकिन नींद खो गयी। भोग का साधन उपलब्ध है, लेकिन भोग की सुविधा न रही। अच्छा भोजन उपलब्ध है, लेकिन खाना पड़ता है साग-भाजी; इससे ज्यादा कुछ खा नहीं सकते। दाल का पानी पीते हैं। भोग का सब साधन उपलब्ध है, लेकिन अब भूख खो गयी। जीवन गंवा दिया इकट्ठा करने में। . सुख तो तुम्हारी संवेदनशीलता पर निर्भर है। ऐसा समझो कि फूल इकट्ठे करने में तुम्हारी नाक कट गयी। जब तक फूल इकट्ठे हो पाये, तब तक नाक न बची। अब सुगंध लेने की क्षमता न रही। महल बनाया था कि इसके भीतर शांति से विश्राम करेंगे। महल तो बन गया, लेकिन महल बनाने में जो श्रम करना पड़ा, जो दौड़-धूप करनी पड़ी, वह आदत अब एकदम नहीं छूट सकती। अब मकान तो बन गया, अब भीतर बैठे हैं, लेकिन विश्राम नहीं कर सकते। ___ विश्राम करना कोई छोटी-मोटी बात थोड़े ही है कि जब चाहा कर लिया। उसका भी जीवन में एक तारतम्य होना चाहिए। हर कोई थोड़े ही विश्राम कर सकता है। विश्राम के लिए एक गहरी कला होनी चाहिए कि तुम अपने को विराम दे सको। तुम अपने मन को जब चाहो तब कह सको कि बस ठहर और मन ठहर जाये, तो विश्राम हो सकता है। मन को कभी ठहराया नहीं, ध्यान का कभी एक क्षण न जाना, प्रेम का कभी एक क्षण न जाना। प्रेम की फुर्सत कहां है? जिसको धन की दौड़ लगी है, उसको प्रेम की फुर्सत नहीं है। और धन का पागल प्रेम से बचता भी है। क्योंकि प्रेम में खतरा है। ____ मैं एक घर में कुछ दिनों तक रहता था। वे जो सज्जन थे, जिनका घर था, उनको मैं गौर से देखता था। न तो वे कभी अपनी पत्नी से बात करते दिखाई पड़ते, न अपने बच्चों के साथ खेलते दिखाई पड़ते। वे एकदम तीर की तरह घर में आते, सीधा देखते जमीन की तरफ, और तीर की तरह जाते। मैंने एक दिन उन्हें रोका। मैंने कहा, मामला क्या? बात क्या है। आप कभी पत्नी के पास बैठे दिखाई नहीं पड़ते कि गपशप करते हों। कभी आपके घर मेहमान दिखाई नहीं पड़ते आते हुए। कभी यह भी परमात्मा हमारा स्वभावसिद्ध अधिकार है। 265
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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