________________
तो अभी कोट खरीद लो। लेकिन अगर खीसे में रुपये न हों तो जरूरत भी न हो अभी कोट की तो भी खलता है-लगता दीनता, दरिद्रता, छोटापन, सामर्थ्य की हीनता; मन टूटा-टूटा मालूम होता है। ___तुम जरा गौर से देखनाः मन, तुम्हारी जितनी ज्यादा परिग्रह की सीमा होती है, उतना ही बड़ा होता है। 'मेरे' को त्याग दो, मन गया। मन कोई वस्तु नहीं है। मन तो शरीर और आत्मा के एक-दूसरे से मिल जाने से जो भ्रांति पैदा होती है उसका नाम है। मन तो प्रतिबिंब है।
ऐसा समझो कि तुम दर्पण के सामने खड़े हुए। दर्पण सच है, तुम भी सच हो; लेकिन दर्पण में जो प्रतिबिंब बन रहा है वह सच नहीं है। आत्मा और शरीर का साक्षात्कार हो रहा है। शरीर का जो प्रतिबिंब बन रहा है आत्मा में, उसको अगर तुमने सच मान लिया तो मन; अगर तुमने जाना कि केवल शरीर का प्रतिबिंब है, न तो मैं शरीर हूं, तो शरीर का प्रतिबिंब तो मैं कैसे हो सकता हूं, तो फिर कोई मन नहीं। ___ बुद्धपुरुष के पास कोई मन नहीं होता। अ-मन की स्थिति का नाम ही तो बुद्धत्व है। इसलिए
र कहते हैं, अ-मनी दशा: स्टेट आफ नो माइंड। अ-मनी दशा! उन्मनी दशा! बे-मनी दशा! जहां मन न रह जाये। ____ मन केवल भ्रांति है, धारणा है, ऐसी ही झूठ है जैसे यह मकान और तुम कहो 'मेरा'! मकान सच । है, तुम सच हो; मगर यह 'मेरा' बिलकुल झूठ है; क्योंकि तुम नहीं थे तब भी मकान था और तुम कल नहीं हो जाओगे तब भी मकान रहेगा। और ध्यान रखना, जब तुम मरोगे तब मकान रोयेगा नहीं कि मालिक मर गया। मकान को पता ही नहीं है कि बीच में आप नाहक ही मालिक होने का शोरगुल मचा दिए थे। मकान ने सुना ही नहीं है। तुम नहीं थे, धन यहीं था। तुम नहीं रहोगे, धन यहीं रह जायेगा। सब ठाठ पड़ा रह जायेगा जब लाद चलेगा बनजारा! तो जो पड़ा जायेगा, उस पर तुम्हारा दावा झठ है। इसलिए तो हिंद कहते हैं: सबै भमि गोपाल की। वह जो सब है. परमात्मा का है: मेरा कछ भी नहीं। जिसने ऐसा जाना कि सब परमात्मा का है. मेरा कछ भी नहीं. उसका मन चला गया। ___मन बीमारी है। मन अस्तित्वगत नहीं है। मन केवल भ्रांति है। तुमने राह पर पड़ी रस्सी देखी और समझ लिया सांप और भागने लगे; कोई दीया ले आया और रस्सी रस्सी दिखाई पड़ गई और तुम . हंसने लगे-बस मन ऐसा है। दीये से देख लो जरा-मन नहीं है। जैसे रस्सी में सांप दिख जाये, ऐसी मन की भ्रांति है। मन मान्यता है।
तो बुद्धपुरुषों को मन तो होता नहीं, इसलिए मानसिक दुख का तो कोई सवाल ही नहीं उठता। मानसिक दुख तो उन्हीं को होता है जिनके पास जितना बड़ा मन होता है।
तुम देखो इसे, समझो। गरीब देशों में मानसिक बीमारी नहीं होती। गरीब देश में मनोवैज्ञानिक का कोई अस्तित्व ही नहीं है। जितना अमीर देश हो उतनी ही ज्यादा मनोवैज्ञानिकों की जरूरत है, मनोचिकित्सकों की जरूरत है। अमरीका में तो शरीर का डाक्टर धीरे-धीरे कम पड़ता जा रहा है और मन का डाक्टर बढ़ता जा रहा है। स्वाभाविक! क्योंकि मन बड़ा हो गया है। धन फैल गया। 'मेरे' का भाव फैल गया। आज अमरीका में जैसी समृद्धि है वैसी कभी जमीन पर किसी देश में नहीं थी। उस समृद्धि के कारण मन बड़ा हो गया है। मन बड़ा हो गया है तो मन की बीमारी बड़ी हो गई है। तो आज तो हालत ऐसी है कि करीब चार में से तीन आदमी मानसिक रूप से किसी न किसी प्रकार से रुग्ण
खुदी को मिटा, खुदा देखते हैं