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________________ के बाहर जा सकते थे। कौन उनका क्या बिगाड़ लेगा! कोई उनका कुछ बिगाड़ न सकता था। फ्रायड ने कहा है कि लोग धन खोजते, पद खोजते, लेकिन गहरे में खोज यही है कि जब बल होगा धन का, पद का, तो कामवासना को तृप्त कर लेंगे। फिर जैसा करना चाहेंगे वैसा कर लेंगे। लेकिन सबसे गहरे में कामवासना है। अविह्वलमना स्वस्थो मुक्त एव महाशयः। 'अविह्वलमना', जिसका मन अब विह्वल नहीं होता, कंपता नहीं, निष्कंप हो गया है। स्त्री से प्रयोग करो, पुरुष से प्रयोग करो। जीवन इसी का अवसर है। थोड़े-थोड़े जागते-जागते एक दिन महाजाग भी आयेगी। रत्ती-रत्ती प्रकाश इकट्ठा करते-करते एक दिन महासूर्य भी प्रगट होगा। साथ चलो तो मैं खड़ा चलने को तैयार सन्नाटे के बीच से-सन्नाटे के पार। जब तुम पैदा हुए, सन्नाटे से आये थे। जब तुम मृत्यु में जाओगे, फिर सन्नाटे में जाओगे। झेन फकीर कहते हैं : अपने उस चेहरे को खोज लो जो जन्म के पहले तुम्हारा था और मृत्यु के बाद फिर तुम्हारा होगा। यह बीच का चेहरा उधार है। यह चेहरा तो तुम्हारे मां और पिता से मिला है; यह चेहरा तुम्हारा नहीं। यह मौलिक नहीं। • साथ चलो तो मैं खड़ा चलने को तैयार सन्नाटे के बीच से-सन्नाटे के पार। . इसलिए समस्त धर्म सन्नाटे की साधना है—शून्य की, मौन की, ध्यान की। तुमको चिंता राह की, मुझको चिंता और यहीं न हमको रोक ले कोई मंजर-मौर। राह की बहुत फिक्र मत करो। सब राहें परमात्मा की तरफ जाती हैं। एक ही फिक्र करना कि रास्ते पर कोई अटकाव में अटक मत जाना; किसी पड़ाव को मंजिल मत समझ लेना। सब पहुंच जाते हैं, अगर चलते रहें, अगर चलते रहें। रुके कि अटक जाते हैं। तुम कहीं भी रुकना मत-धन पर, पद पर, मोह पर, लोभ पर, राग पर। कहीं रुकना मत। चलते ही जाना। जागते ही जाना। चढ़ो न मन की पालकी चलो न अपनी छांव बटमारों का देश है, नहीं सजन का गांव। सबमें सबकी आत्मा, सबमें सबका योग ऐसे भी थे दिन कभी, ऐसे भी थे लोग। तुम भी ऐसे ही हो सकते हो। जो अष्टावक्र को हुआ, तुम्हें हो सकता है। जो मुझे हुआ, तुम्हें हो सकता है। जो एक को हुआ, सभी को हो सकता है। सबमें सबकी आत्मा, सबमें सबका योग ऐसे भी थे दिन कभी, ऐसे भी थे लोग। नहीं, यह बात समाप्त नहीं हो गयी है। ऐसा नहीं है कुछ कि बुद्धपुरुष होना बंद हो गये। कभी बंद नहीं होते। जहां सोये लोग हैं वहां कोई न कोई, कभी न कभी जागता ही रहेगा। नींद में जागने के कमल खिलेंगे ही। जहां पाप है, वहां पुण्य भी प्रगट होगा। और जहां रात है, सुबह भी होगी। अंधेरा धर्म अथात सन्नाट की साधना 051
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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