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________________ मुक्त नहीं हुए। देखो, सखियां नाच रहीं और कृष्ण बांसुरी बजा रहे और डोल रहे हैं! तो ये तो विचलित होते मालूम होते हैं। डोल रहे हैं, देखो! जैसा बीन बजाने से सांप डोलता है, ऐसे कृष्ण डोल रहे हैं। ये तो विचलित मालूम होते हैं। तो ये फिर मुक्त नहीं हैं। जो डोल रहा है, वही अगर कृष्ण होते तो तुम्हारी बात सही थी। इस डोलने के बीच में कोई अनडोला खड़ा है। यह बांसुरी बज रही है और भीतर कोई बांसुरी नहीं बज रही। इस नृत्य के बीच में कोई बिलकुल शांत है। इन लहरों के बीच में कोई बिलकुल मौन है। मगर उसे तुम कैसे देखोगे? उसे तो तुमने अपने भीतर देख लिया हो तो ही तुम पहचान पाओगे। तो तत्क्षण तुम्हें कृष्ण के भीतर भी दिखाई पड़ जाएगी वह ज्योति, वह लपट। जिन्होंने कृष्ण को पहचाना वे पहले अपने को पहचाने, तो ही। बुद्ध से कोई पूछता है एक दिन कि हम कैसे आपको पहचानें? आपकी घोषणा हमने सुनी कि आप बुद्धत्व को उपलब्ध हो गये हैं, कि आपको महाज्ञान फलित हुआ है, कि आपकी मुक्ति हो गई, कैवल्य हो गया। हम आपको कैसे पहचानें? हमें कुछ आधार दें। बुद्ध ने कहाः मुझे पहचानने चलोगे तो भटक जाओगे। तुम अपने को पहचानने में लगो। जिस दिन तुम अपने को पहचान लोगे उस दिन क्षण भर की भी देर न लगेगी, तुम मुझे भी पहचान लोगे।। इन सूत्रों को तुम दूसरों के लिए उपयोग मत करना। आदमी बड़ा बेईमान है! आदमी को कुछ भी समझ में आये तो समझ का भी दुरुपयोग ही करता है। फिर वह कहने लगता है कि अच्छा, तो फलां आदमी फिर अभी मुक्ति को उपलब्ध नहीं हुआ। ___ तुम अपने भीतर इस कसौटी को संभाल कर रखो। राह से निकलते हो, एक सुंदर स्त्री पास से गुजर गयी या सुंदर पुरुष पास से गुजर गया; तुम्हारे भीतर कुछ कंपता है? अगर नहीं कंपता तो प्रसन्न हो जाओ। थोड़ा-सा तुम्हें जीवन का स्वाद मिला! अकंप है जीवन ! तुम थोड़े बाहर हुए धुएं के! खुशी मनाओ! कुछ तुम्हें मिल गया! धीरे-धीरे यही अभ्यास सघन होता जायेगा तो किसी दिन मौत आयेगी। कामवासना का अंतिम परिणाम मृत्यु में ले जायेगा। शरीर चूंकि बना ही कामवासना से है, इसलिए मृत्यु तो होगी। अगर तुम कामवासना के प्रति जागते रहे तो एक दिन मृत्यु में भी जाग जाओगे। और जो जाग कर मर जाता है, फिर उसका लौटना नहीं है; फिर उसका पुनरागमन नहीं है। तुमने बार-बार सुना है यह कि कैसे आवागमन मिटे। यह है रास्ता आवागमन के मिटने का। , जीते-जी तुम मुक्त हो सकते हो। जीते-जी, जीवन-मुक्त का अर्थ होता है : जो काम से मुक्त हुआ; जिसे अब स्त्री या पुरुष का आकर्षण नहीं खींचता। और सब आकर्षण छोटे हैं। धन का आकर्षण है, गौण है। पद का आकर्षण है, वह भी गौण है। काम का आकर्षण सबसे गहरा है। वस्तुतः हम धन भी इसीलिए चाहते हैं ताकि कामवासना को तृप्त करना सुगम हो जाये और पद भी इसीलिए चाहते हैं ताकि कामवासना को तृप्त करना सुगम हो जाये। ___ तुमने देखा, राजाओं को हजारों स्त्रियां रखने की सुविधा थी! मन तो सभी का है। मन तो सभी के राजा के हैं। लेकिन रख नहीं सकते, क्योंकि एक ही रखना महंगा पड़ जाता है; एक के साथ ही मुश्किल खड़ी हो जाती है। सम्राटों की हजारों स्त्रियों की कथा तुम पढ़ते हो, वे झूठी नहीं हैं। उनके पास सुविधा थी, धन था, पद था, प्रतिष्ठा थी। वे समाज, नीति-नियम सबको तोड़ सकते थे; मर्यादा 204 अष्टावक्र: महागीता भाग-4
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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