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________________ तो क्रोध था। वह कोई टिकने वाली भाव-दशा न थी, नकारात्मक दशा थी। स्व-रस में रस की कुछ झलक मिलती है। परमात्मा के मंदिर के करीब आ गये; करीब-करीब सीढ़ियों पर खड़े हो गये। पर-रस ऐसा है, परमात्मा की तरफ पीठ किये खड़े हैं। विरस ऐसा है कि परमात्मा की तरफ पीठ करने में क्रोध आ गया; मुंह करने की चेष्टा कर रहे हैं परमात्मा की तरफ; सन्मुख होने की चेष्टा शुरू हुई। स्व-रस ऐसा है, सीढ़ियों पर आ गये। लेकिन स्व को सीढ़ियों पर ही छोड़ आना पड़ेगा, जहां जूते छोड़ आते हैं। बस वहीं। तो भीतर प्रवेश है। तो मंदिर में प्रवेश है। मंदिर का नाम है : रसो वै सः! मंदिर का नाम है : रस! वहां न स्व है न पर है; वहां एक ही है। वहां दो नहीं हैं। इस अवस्था को ही अष्टावक्र ने स्वच्छंद कहा है। यह पर से भी मुक्त है, स्व से भी मुक्त है। यह छंद ही और है। यह अलौकिक बात है। भाषा में कहना पड़ता है तो कुछ शब्दों का उपयोग करना पड़ेगा। इसलिए बुद्ध ने इसे निर्वाण कहा है; कुछ भी न बचा। जो भी तुम जानते थे, कुछ न बचा। तुम्हारा जाना हुआ सब गया; अज्ञात के द्वार खुले। तुम्हारी भाषा काम नहीं आती। इसलिए बुद्ध निर्वाण के संबंध में चुप रह जाते हैं, कुछ कहते नहीं।। एक ईसाई मिशनरी 'स्टेनली जोन्स' काफी प्रसिद्ध, विश्वप्रसिद्ध ईसाई मिशनरी थे। वे रमण महर्षि को मिलने गये थे। वर्षों बाद मेरा भी उनसे मिलना हुआ। रमण महर्षि से उन्होंने बात की। बुद्धिमान आदमी हैं स्टेनली जोन्स। बहुत किताबें लिखी हैं। और ईसाई जगत में बड़ा नाम है। लेकिन वह नाम बुद्धिमत्ता का ही है; वह किसी आत्म-अनुभव का नहीं है। रमण महर्षि से वे इस तरह के प्रश्न पूछने लगे जो कि नहीं पूछने चाहिए। और रमण महर्षि जो उत्तर देते वह उनकी पकड़ में न आता। जैसे उन्होंने पूछा कि क्या आप पहुंच गये हैं? रमण महर्षि ने कहा ः 'कहां पहुंचना, कहां आना, कहां जाना!' स्टेनली जोन्स ने फिर पूछा ः 'मेरे प्रश्न का उत्तर दें! क्या आप पहुंच गये हैं? क्या आपने पा लिया?' रमण महर्षि ने फिर कहा ः 'कौन पाये, किसको पाये! वही है। न पाने वाला है कोई, न पाये जाने वाला है कोई।' स्टेनली जोन्स ने कहा कि देखिए आप मेरे प्रश्न से बच रहे हैं। मैं आपसे कहता हूं कि मैंने पा लिया है, जबसे मैंने जीसस को पाया। मैंने पा लिया। आप सीधी बात कहें। तो रमण महर्षि ने कहाः 'अगर पा लिया तो खो जायेगा; क्योंकि जो भी पाया जाता है, खो जाता है। जिससे मिलन होता है, उससे बिछुड़न। जिससे शादी होती है उससे तलाक। जन्म के साथ मौत है। अगर पाया है तो कभी खो बैठोगे। उसको पाओ जो पाया नहीं जाता। स्टेनली जोन्स ने समझा कि यह तो सब बकवास है। यह कोई बात हुई—उसको पाओ जिसको पाया नहीं जाता! तो फिर पाने का क्या अर्थ? फिर तो उसने रमण महर्षि को ही उपदेश देना शुरू कर दिया। बहुत वर्षों बाद मेरा भी मिलन हो गया। एक परिवार, एक ईसाई परिवार मुझमें उत्सुक था, स्टेनली जोन्स उनके घर मेहमान हुए। तो उन्होंने आयोजन किया कि हम दोनों का मिलना हो जाये। बड़े संयोग की बात कि स्टेनली जोन्स ने फिर वही पूछा ः 'आपने पा लिया है?' मैंने कहाः 'यह झंझट हुई। मैं फिर वही उत्तर दूंगा।' उन्होंने कहाः 'कौन-सा उत्तर?' क्योंकि वे तो भूल-भाल चुके थे। मैंने अष्टावक्र: महागीता भाग-4
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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