SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समझोगे कि वह जो साक्षी की बात कर रहे थे वे भी ठीक ही बात कर रहे थे। ___ ध्यान और प्रेम अंतिम चरण में मिल जाते हैं। लेकिन अंतिम चरण में ही मिलते हैं, उसके पहले नहीं। उसके पहले दोनों के रास्ते बड़े अलग-अलग हैं। प्रेमी रोता है-रसविभोर, पुकारता है, विकल हो कर। ध्यानी शांत हो कर बैठ जाता है—न पुकार, न विरह। ध्यानी तो बिलकुल शून्य होकर बैठ जाता है; कहीं जाता ही नहीं, कुछ खोजता ही नहीं; सब आकांक्षा से शून्य हो जाता है। प्रेमी सारी आकांक्षाओं को एक ही आकांक्षा में बदल देता है-प्रभु को पाने की। ध्यानी शून्य हो जाता; प्रेमी परमात्मा को अपने में भरने लगता है। और शून्य और पूर्ण आखिरी स्थिति में एक ही चीज सिद्ध होते हैं—एक ही चीज को देखने के दो ढंग। ___तुम इस उलझाव में मत पड़ना। मुझे सुनने वाले इस उलझाव में पड़ सकते हैं। ऐसी झंझट पहले न थी। कम से कम दूसरे गुरुओं के साथ न थी। मीरा कहती तो प्रेम की ही बात कहती थी; साक्षी की बात ही न उठाती थी। और अष्टावक्र कहते तो साक्षी की ही बात कहते; प्रेम की बात न उठाते। सुनने वालों को सुविधा थी। मैं कभी तुमसे प्रेम की बात कहता हूं, कभी साक्षी की—इससे विरोधाभास पैदा हो जाता है। लेकिन मैं तुमसे यह कहना चाहता हूं कि अष्टावक्र आधी मनुष्यता के लिए बोले और मीरा भी आधी मनुष्यता के लिए बोली-मैं पूरी मनुष्यता के लिए बोल रहा हूं; पूरे मनुष्य के लिए बोल रहा हूं। इससे अड़चन आती है। और इस बोलने के पीछे कुछ प्रयोजन है। प्रयोजन यह है कि अब तक जितने धर्म पैदा हुए सब अधूरे हैं। जैसे जैन धर्म है, वह साक्षी का धर्म है। उसमें स्त्री को जगह नहीं। उसमें प्रेमी को जगह नहीं। उसमें भक्ति-भाव को जगह नहीं। दुनिया में आधी स्त्रियां हैं, आधे पुरुष हैं। तुम जान कर हैरान होओगे, जैन शास्त्र कहते हैं कि स्त्री-पर्याय से मोक्ष नहीं। अगर किसी स्त्री को कभी मोक्ष मिलेगा तो पहले पुरुष-पर्याय में होना पड़ेगा, तब मोक्ष मिलेगा। क्यों? बुद्ध का मार्ग भी साक्षी का मार्ग है। बुद्ध ने वर्षों तक इंकार किया, स्त्रियों को दीक्षा नहीं देंगे। टालते रहे। क्यों? दुनिया में आधी स्त्रियां हैं। अगर जैन धर्म जीत जाये तो आधी ही दुनिया धार्मिक हो पायेगी। और इस बात को खयाल रखना, अगर स्त्रियां अधार्मिक रहें तो पुरुष धार्मिक हो न पायेंगे। क्योंकि उनका आधा अंग अधार्मिक रहेगा। बहुत कठिन हो जायेगी बात। यात्रा बहुत दूर तक न हो पायेगी। टूटा-फूटा धर्म होगा, खंडित धर्म होगा। मीरा है, चैतन्य हैं, कबीर हैं-वे प्रेम की बात करते हैं। अगर उनकी बात सही है तो ध्यान का क्या होगा? अगर उनकी ही बात सही है तो उन लोगों का क्या होगा जो प्रेम करने में समर्थ नहीं? जिनके हृदय में मरुस्थल जैसा सन्नाटा है, शून्य है-वे भी हैं। उनका क्या होगा? उनकी भी संख्या आधी है। मेरे हिसाब में, इस जगत में एक गहरा संतुलन है। जैसे आधी स्त्रियां, आधे पुरुष; आधा दिन, आधी रात: धप और छाया का मेल है-ऐसे हर चीज आधी-आधी है। यहां आधे लोग ध्यान के मार्ग से पहुंचेंगे और आधे लोग भक्ति के मार्ग से पहुंचेंगे। अब तक दुनिया के जितने धर्म थे, वे अधूरे-अधूरे थे। और किसी धर्म ने मनुष्य की पूर्णता को छूने की चेष्टा नहीं की। खतरा था। वह खतरा मैं उठा रहा हूं। खतरा यह है कि अगर मनुष्य की पूर्णता 176 अष्टावक्र: महागीता भाग-4
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy