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________________ दिन में कोशिशें कीं, वे व्यर्थ गयीं। ____ तुम देखते हो, महावीर नग्न खड़े हैं। लेकिन फिर भी क्या कोई बादशाह इनसे बड़ी बादशाहत को कभी उपलब्ध हुआ है? स्वामी राम अपने को बादशाह कहते थे। उन्होंने एक किताब लिखी है : राम बादशाह के छ: हुक्मनामे। था तो उनके पास कुछ नहीं लंगोटी। छः हुक्मनामे! उसमें छः आदेश दिये हैं दुनिया के नाम, फरमान-कि ऐसा करो। जब वे अमरीका गये तो वहां भी अपने को बादशाह राम ही कहते रहे! लोगों ने उनसे पूछा कि आप फकीर हैं, अपने को बादशाह क्यों कहते हैं? उन्होंने कहा ः इसीलिए, क्योंकि मेरे पास सब है। जिस दिन मैंने छोटा घर छोड़ा, यह सारा ब्रह्मांड मेरा घर हो गया। मैंने क्षुद्र क्या छोड़ा. विराट मेरी संपदा हो गयी। अब मेरे पास सब है, सारी संपदा है। सारे जगत की संपदा मेरी है। चांद-तारे मेरे लिए चलते हैं। सूरज मेरे लिए उगता है। यह सब मेरे इशारे पर हो रहा है। लोग समझते कि दिमाग इनका थोडा कछ खराब है। तम्हारे इशारे पर हो रहा है। लेकिन राम ठीक कह रहे हैं। एक ऐसी घड़ी है : जब तुम मिट जाते हो, तब तुम्हारे भीतर से परमात्मा ही बोलता है। किसी ने उनसे पूछा, आपके इशारे से हो रहा है? उन्होंने कहा, और किसके इशारे से होगा? मेरे अतिरिक्त कोई है नहीं। मैंने ही इनको चलाया। जब पहली दफा मैंने इनको धक्का दिया, तो मैं ही था। ये चांद-तारे मैंने बनाये। मेरे इशारे से चल रहे हैं। पहले ही से मेरे इशारे से चल रहे हैं। यह किसी और महत लोक की बात है। राम में बादशाहत थी। समस्त वासना मुक्तो मुक्तः सर्वत्र राजते।। सर्वत्र...जिसकी वासना शून्य हो गयी है वह अपने आंतरिक सिंहासन पर विराजमान है। जो । ऐसे सिंहासन पर विराजमान है वही विराजमान है, शेष सब तो भिखारी हैं। "देखता हुआ, सुनता हुआ, स्पर्श करता हुआ, सूंघता हुआ, खाता हुआ, ग्रहण करता हुआ, बोलता हुआ, चलता हुआ, प्रयास और अप्रयास से मुक्त महाशय निश्चय ही जीवन-मुक्त है।' __ सब करता है और फिर भी कुछ नहीं करता। चलता है और चलता नहीं। बोलता है और बोलता नहीं। खाता है और खाता नहीं। ___जैन शास्त्रों में एक उल्लेख है। एक जैन मुनि का आगमन हुआ। वह यमुना के उस पार ठहरे। यमुना में बाढ़ आयी है। और रुक्मिणी ने कृष्ण से पूछा कि मुनि ठहरे हैं उस पार, नाव लगती नहीं, कौन उन्हें भोजन पहुंचायेगा? भोजन हमें पहुंचाना चाहिए। कृष्ण ने कहा, तो पहुंचाओ। पर उसने कहाः पार कैसे जायें? नाव लगती नहीं। उन्होंने कहा : इतना ही कह देना कि अगर मुनि सदा से उपवासे हैं तो यमुना राह दे दे। अगर मुनि उपवासे हैं तो यमुना राह दे देगी। बड़ी मीठी कहानी है। रुक्मिणी ने थाल सजाये। वह अपनी सखियों के साथ पहुंची। उसने जा कर कहा नदी को कि हे नदी, मुनि उस तरफ भूखे हैं और अगर वे सदा के उपवासे हों तो तू राह दे दे। और कहते हैं, नदी ने राह दे दी। चकित, नदी से रुक्मिणी गुजर गयी। उस तरफ जा कर मुनि को भोजन कराया। तब याद आयी कि यह तो बड़ी मुश्किल हो गयी। लौट कर नदी से क्या कहेंगे? क्योंकि अब तो मुनि ने भोजन कर लिया। अब तो वे उपवासे नहीं हैं। और कृष्ण से हमने पूछा ही शन्य की वीणा : विराट के स्वर 161
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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