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________________ कभी विचलित होते न देखोगे। तुम उसे कभी अपने केंद्र से च्युत होते न देखोगे। यह तुरीय अवस्था में ही संभव है-जहां केंद्र उपलब्ध हो जाता है और केंद्र पर पैर जम जाते हैं। जैसे वृक्ष ने जड़ें जमा ली जमीन में, ऐसा ही मुक्त पुरुष अपनी तुरीय अवस्था में जड़ें फैला देता है। सर्वत्र दृश्यते स्वस्थः...| तुम उसे हर जगह स्वस्थ पाओगे। दुख हो या कि सुख हो; सफलता हो कि विफलता हो; जीवन आये कि मृत्यु आये-तुम उसे स्वस्थ पाओगे। तुम उसे मृत्यु में भी स्वस्थ पाओगे। तुम उसे डांवाडोल न देखोगे। सर्वत्र विमलाशयः...। और हर जगह तुम पाओगे उसका आशय निर्मल है। उसके आशय को तुम कहीं भी कठोर न पाओगे। उसके आशय को कहीं विकृत न पाओगे। उसका आशय सदा ही शुभ होगा। ऐसा नहीं कि वह शुभ करना चाहता है। वह तो बात गयी। करने इत्यादि की तो बात गयी। ऐसा नहीं कि वह नैतिक बनने की चेष्टा करता है। वह तो बात गयी। अनीति नहीं बची, नीति नहीं बची। अब तो उसका जो शुद्ध सहज व्यवहार है, वही उसका विमल आशय है। तुम उसके पास एक सुगंध पाओगे। तुम उसके पास एक शांत वातावरण पाओगे। तुम अगर जरा राजी हो, तो तुम उसके वातावरण में डुबकी ले सकते हो; जैसे कोई गंगा में स्नान कर ले, ताजा हो जायेगा। ज्ञानी पुरुष ही असली तीर्थ है। इसलिए जैनों ने महावीर को तीर्थंकर कहा। नदियों के किनारे नहीं हैं तीर्थ, ज्ञानियों के आसपास हैं। क्योंकि ज्ञानियों के भीतर बह रही है असली गंगा। जल की गंगा से तो ठीक है, तुम्हारी देह धुल जायेगी; लेकिन चैतन्य की गंगा से धुलेगा तुम्हारा चैतन्य, तुम्हारी आत्मा भी स्नान कर लेगी। समस्त वासनामुक्तो। वह समस्त वासनाओं से मुक्त हो गया है। मुक्तः सर्वत्र राजते। और तुम उसे हमेशा पाओगे राज सिंहासन पर। चाहे वह धूल में बैठा हो, लेकिन तुम उसकी बादशाहत पहचान लोगे। उसका सम्राट होना सिंहासनों पर निर्भर नहीं है; उसका सम्राट होना बड़ा आंतरिक है। वह चाहे नग्न फकीर की तरह खड़ा हो रास्ते पर, तुम पहचान लोगे कि उसका साम्राज्य है। जीसस ने इसी साम्राज्य की बात की है: 'किंगडम ऑफ गॉड': प्रभु का राज्य। जीसस को बहुत बार उनके दुश्मन पकड़ने आये। लेकिन पास आ कर बदल गये। एक बार पुरोहितों ने आदमी भेजे, दुष्ट से दुष्ट आदमी भेजे कि जीसस को पकड़ लाओ। वे आकर उनकी बात सुनने लगे, मंत्रमुग्ध हो गये। जब लौट कर आये और पुरोहितों ने पूछा : तुम लाये नहीं? तो उन्होंने कहा, बड़ा मुश्किल है। यह आदमी बड़ा अदभुत है। इसके पास एक गरिमा है, कि हम एकदम दब गये। यह बादशाहत है इसके पास कोई, कि हम एकदम दीन-हीन मालूम होने लगे। कैसे तो इसके हाथ में हथकड़ियां डालें? हमने अपनी हथकड़ियां छुपा लीं। यह आदमी बहुत अद्भुत है। ऐसा आदमी कभी हुआ नहीं। इसलिए फिर जीसस को अंधेरी रात में पकड़ा। दिन में पकड़ने की फिर कोशिश नहीं की; क्योंकि 160 अष्टावक्र: महागीता भाग-4
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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