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________________ तुमने जो-जो सुख सोचा, वही-वही तुमसे बदला ले रहा है। तुमने जो-जो चाहा, मिल गया। मिल गया तो दुख है, नहीं मिला तो दुख है। तुमने चाहा तो बस दुख ही चाहा। मिले तो दुख, न मिले तो दुख। तुम अमीर हो जाओ तो दुखी रहोगे। अमीरों को देख लो! तुम गरीब रह जाओ तो दुखी होओगे। तुम कुंवारे रह जाओ तो दुखी होओगे, तुम विवाहित हो जाओ तो दुखी होओगे। तुम विवाहितों को देख लो! जीवन में तुम जरा हारे हुओं को देखो, जीते हुओं को देखो-सबको दुखी पाते हो। अगर तुमने कभी किसी आदमी को सुखी पाया होगा तो वह वही आदमी है जो हार-जीत दोनों को छोड़ कर अलग खड़ा हो गया; जो द्रष्टा और साक्षी हो गया। न तो हारने वाले सुखी हैं, न जीतने वाले सुखी हैं-दोनों के पार जो अतिक्रमण कर जाता, वही सुखी है। बुभुक्षुरिह संसारे मुमुक्षुरपि दृश्यते। भोगमोक्ष निराकांक्षी विरलो हि महाशयः।। ऐसा कोई विरला ही महाशय है! यह 'महाशय' शब्द बड़ा प्यारा है। हमें इसके साथ-साथ एक और शब्द बना लेना चाहिए : क्षुद्राशय। अगर तुम्हारे मन में कोई वासना है तो तुम क्षुद्राशय हो गये; क्योंकि तुम्हारी वासना तुम्हें संकीर्ण कर देती है, तुम्हारा आशय छोटा हो गया, क्षुद्र आशय हो गये। जिसने धन चाहा, वह छोटा हो गया। उसकी चाह ही तो उसकी परिभाषा होगी। उसको तुम कैसे याद करोगे? ऐसे याद करोगे न-धनाकांक्षी! उसकी आकांक्षा धन की है, वह धन से भी छोटा हो गया। धन तो है ठीकरा; वह ठीकरे से गया-बीता हो गया। ठीकरों से गया-बीता ही तो ठीकरों को चाहेगा! किसी ने कुर्सी चाही, वह कुर्सी से छोटा हो गया। क्षुद्राशय! कुर्सी ही चाही न, तो कुर्सी से छोटा ही होगा, तो ही चाहेगा। ___मनस्विद कहते हैं : पदाकांक्षी हीन-ग्रंथि से पीड़ित होते हैं। सभी राजनीतिज्ञ हीन-ग्रंथि से पीड़ित होते हैं। कभी अच्छी दुनिया होगी तो राजनीतिज्ञ राजधानियों में नहीं होंगे, पागलखानों में होंगे। उनका इलाज होगा। मैं तुमसे कहता हूं कि अगर पागल पागलखानों से छोड़ दिए जायें और राजनीतिज्ञ पागलखानों में रख दिए जायें, दुनिया बेहतर हो। क्योंकि किन्हीं पागलों ने इतना भयकर नुकसान कभा नहीं किया; कोई पागल इतना पागल नहीं है जितना पदाकांक्षी पागल होता है। ___मनस्विद कहते हैं : जितनी ही भीतर हीनता की ग्रंथि होती है, जितना ही इनफीरियारिटी काम्प्लेक्स होता है, जैसे ही लगता है कि मैं कुछ भी नहीं, उतना ही आदमी कम्पंसेट करना चाहता है, उतना ही आदमी जोर से दावा करना चाहता कि मैं यह, मैं यह! राष्ट्रपति! प्रधानमंत्री! मंत्री! कुछ न कुछ! गवर्नर! कुछ न कुछ मैं हूं! यह दावा करना चाहता है। यह दावा जब तक वह कर न ले, तब तक उसे चैन नहीं मिलता; उसकी हीन-ग्रंथि उसको कीड़े की तरह काटती रहती है। क्षुद्राशय! ___ महाशय कौन है? महाशय वही है जिसके जीवन में कोई ऐसी वासना नहीं है जो संकीर्ण कर दे; जो सभी आयामों में खुला है! महा-आशयः जिसका आशय महान है! और तुम चकित होओगे, अष्टावक्र कहते हैं : मोक्ष को भी चाहा तो भी क्षुद्राशय हो गये, क्योंकि मोक्ष की चाह भी तो चाह ही है। धन से बड़ी, माना; पद से बड़ी, माना–लेकिन मोक्ष की चाह भी आखिर चाह है। अचाह ही तुम्हें महाशय बनायेगी। 'कोई उदारचित्त ही धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, जीवन और मृत्यु के प्रति हेय और उपादेय का भाव 110 अष्टावक्र: महागीता भाग-4
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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