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न हुआ। डॉक्टर ने कहा अब क्या विचार है? अब और क्या करें?
उसने कहा: अब मेरा पोस्ट मार्टम किया जाए।
सुन रखा था कि पोस्ट मार्टम भी होता है। तो सोचा कि एक जांच बाकी रह गई। आदमी की मूढ़ता अगर है तो सब तरफ से प्रगट होगी, जगह-जगह से प्रगट होगी। अगर बोध है तो संसार में भी प्रगट होगा, और अगर अज्ञान है तो त्याग में भी प्रगट होगा।
इसलिए तुम छोड़-छाड़ कर भागने की बात मत सोचना। जहां हो, जैसे हो, उसी स्थिति में कर्ता - भाव को विसर्जित करो! कर्ता भाव को समाप्त हो जाने दो। धीरे- धीरे अकर्ता - भाव से करते रहो जो कर रहे थे। कल भी किया था, आज भी करो वही । बस इतना सा फर्क पीछे से खिसका लो कि करने वाले तुम न रह जाओ। कल भी दूकान गए थे, आज भी जाना है। कल भी ग्राहक को बेचा था, आज भी बेचना है। बस, इतना फर्क कर लेना है कि कर्ता - भाव सरका लेना है। कल मालिक की तरह दूकान पर गए थे, आज ऐसे जाना कि मालिक परमात्मा है, तुम तो केवल नौकर-चाकर। और तुम अचानक फर्क पाओगे - चिंता गई, झंझट गई! ग्राहक ले ले तो ठीक, न ले ले तो ठीक। मालकियत क्या गई कि सारा पागलपन गया ।
इतना ही हो जाए, तो तुम धीरे - धीरे पाओगे -जहां थे वहीं, जैसे थे वहीं, धीरे - धीरे परमात्मा तुम्हारे भीतर जाग गया, उतर गई रोशनी, अवतरण हुआ
'अचिंत्य का चिंतन करता हुआ भी यह पुरुष चिंता को ही भजता है। इसलिए उस भावना को त्याग कर मैं भावना मुक्त हुआ स्थित हूंं '
कहते हैं, बड़ी अदभुत घटनाएं दुनिया में घटती हैं। अचिंत्य का भी लोग चिंतन करते हैं। पूछो महात्माओं से कहेंगे, परमात्मा अचिंत्य है - और फिर समझाएंगे कि परमात्मा की याद करो, स्मरण करो।
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अचिंत्य का चिंतन ! क्या कहते हो ? अचिंत्य का तो अर्थ ही यह हुआ कि चिंतन नहीं हो सकता अचिंत्य का तो कोई चिंतन नहीं हो सकता। ही, सब चिंतन तुमसे छूट जाएं, तुम चिंतन पर पकड़ न रखो, तो अचिंत्य तुम्हें उपलब्ध हो जाए ।
तो परमात्मा की कोई चितना थोड़े ही करनी होती है; नहीं तो नई चिंता सवार हुई। ऐसे ही चिंताएं क्या कुछ कम हैं तुम पर? ऐसे ही बोझ से दबे जाते हो। ऊंट तुम्हारा वैसे ही तो गिरा जाता है; अब इस पर और परमात्मा को बिठाने की कोशिश कर रहे हो! आखिरी तिनका साबित होगा, बुरी तरह गिरोगे।'
अधार्मिक आदमी चिंतित होता है, धार्मिक आदमी और बुरी तरह चिंतित हो जाता है। अधार्मिक आदमी को संसार की ही चिंता है, धार्मिक को परलोक की भी चिंता लगी है। यहां भी धन कमाना, वहा भी धन कमाना। यहां भी कुछ करके दिखाना है, वहा भी पुण्य का अर्जन कर लेना है। तुम तो यहीं बैंक–बैलेंस रखते हो, वह वहा भी रखता है। वह वहा के लिए भी हुंडिया लिखवाता है। उसक चिंता और भी भारी हो जाती है।