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सोच-समझ कर देना। क्योंकि वक्तव्य आप जब लोगों के सामने दे रहे हैं, तो वहीं मुझे भी कुछ कहना पड़ेगा। अभी स्रोत के करीब हो तुम। यह स्रोत गंगा बनेगा। अभी गंगोत्री में शायद तुम पहचान न पाओ। पीछे तुम पछताओगे।
तो अगर ऐसी सौभाग्य की किरण तुम्हारे भीतर उठी हो कि भाव उठता हो कि डूब लें, मस्त हों लें–तो रुको मत! लाख भय हों, किनारे सरका कर उतर जाओ। और भय मिटते ही हैं, जब तुम उन्हें सरका कर आगे बढ़ते हो, अन्यथा वे कभी मिटते नहीं।
नातू खेती भी
बात भी तू हासिल भी तू ।
राह तू हरव भी तू
रहबर भी तू मंजिल भी तू ।
नाखुदा तू डेहर तू
कश्ती भी तू साहिल भी तू ।
मय भी तू मीना भी तू
साकी भी तू महफिल भी तू ।
यहां तो कुछ और तुम्हें थोड़े ही सिखा रहा हूं । संन्यास यानी तुम्हारी यादतुम्हें दिलानी है। और तुम सब कुछ हो।
मय भी तू मीना भी तू ।
साकी भी तू महफिल भी तू ।
मेरे पास सिर्फ तुम्हें वही दे देना है जो तुम्हारे पास है ही। मैं तुम्हें वही देना चाहता हूं जो तुम्हारे पास है। जो तुम लिए बैठे हो, और भूल गए हो और जिसका तुम्हें विस्मरण हो गया है। तुम्हें तुम्हारा स्मरण दिला देना है। संन्यास उस स्मरण की तरफ एक व्यवस्थित प्रक्रिया है। इस चक्की पर खाते चक्कर
मेरा तन-मन, जीवन जर्जर
हे कुंभकार, मेरी मिट्टी को
और न अब हैरान करो
अब मत मेरा निर्माण करो!
संन्यास इस बात की घोषणा है कि हे प्रभु! बहुत चक्कर हो गए इस चाक पर।
इस चक्की पर खाते चक्कर
मेरा तन-मन, जीवन जर्जर
हे कुंभकार, मेरी मिट्टी को और न अब हैरान करो अब मत मेरा निर्माण करो।