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रोके, कैसे रोके, रोकने वाला कौन है, कौन नियंत्रण करे, कौन साधना करे, कौन अनुशासन दे? 'जिस महात्मा ने संपूर्ण जगत को आत्मा की तरह जान लिया, उस वर्तमान ज्ञानी को..।'
____ यह शब्द भी खयाल करना-कहते हैं, 'वर्तमान ज्ञानी' को। ज्ञानी अतीत में नहीं होता है और न ज्ञानी भविष्य में होता है। ज्ञान की घटना तो वर्तमान की घटना है। या तो अभी या कभी नहीं। ज्ञान जब भी घटता है ' अभी' घटता है। क्योंकि अभी ही अस्तित्व है। जो जा चुका, जा चुका। जो आया नहीं आया नहीं। इन दोनों के मध्य में जो पतली-सी धार है, बड़ी महीन धार है-जीवन-चेतना की, अस्तित्व की-वहीं ज्ञान घटता है। वर्तमान ज्ञानी को अपनी स्फुरणा से जीना होता है-स्वत स्फुरणा। वह 'सर्व' से आती है स्फुरणा। उसके लिए हम पैदा नहीं करते, न हम नियंत्रण करते हैं। न हम उसके जन्मदाता हैं, न हम उसके नियंत्रक हैं। वह स्फुरणा आती है।
पक्षी गीत गा रहे हैं। वृक्षों में फूल लग रहे हैं। यह सब स्वत: हो रहा है। यह स्फुरणा जागतिक है। वृक्षों को कोई अहंकार नहीं है। वृक्ष ऐसा नहीं कहते कि हम फूल खिला रहे हैं। ऐसी ही अवस्था फिर आ जाती है जब वर्तुल पूरा होता है और व्यक्ति बुद्धत्व को अरिहंतत्व को उपलब्ध होता है, तब फिर ऐसी दशा आ जाती है।
तुम बुद्ध से पूछो कि आप चल रहे हैं? बुद्ध कहेंगे कि नहीं, मैं तो हं ही नहीं चलूंगा कैसे? वही चल रहा है, जो सब में चल रहा है। जो फूल की तरह खिल रहा है, जो नदी की धार की तरह बह रहा है, जो पक्षी की तरह आकाश में उड़ रहा है, जो आकाश की तरह फैलता चला गया है अनंत तक-वही चल रहा है।
पूछो बुद्ध से, आप बोल रहे हैं? वे कहेंगे कि नहीं, वही बोल रहा है।
हम तो बांस की पोगरी-कबीर ने कहा। वह जो गाता है, उसे हम प्रगट कर देते हैं, मार्ग दे देते हैं: रुकावट नहीं डालते। हम तो निमित्त मात्र हैं।
वर्तमान ज्ञानी. वर्तमान के क्षण में जिसका साक्षी जागा हुआ है।
तुम देखो, चाहो तो इसे अभी देख सकते हो, कोई रुकावट नहीं है। तुम साक्षी होकर अभी देख सकते हो। चीजें तो चलती रहेंगी। शरीर है तो भूख लगेगी। शरीर है तो प्यास लगेगी। धूप पड़ेगी तो गर्मी लगेगी। शीत बढ़ जायेगी तो सर्दी लगेगी। भोजन डाल दोगे शरीर में तो तृप्ति हो जायेगी। गर्म कपड़े पहन लोगे, शीत मिट जायेगी। धूप से हट कर छाया में बैठ जाओगे, धूप मिट जायेगी। कर्म तो जारी रहेगा, सिर्फ कर्ता नहीं रह जायेगा भीतर। तुम ऐसा न कहोगे कि मैं परेशान हो रहा, कि मैं पीडित हो रहा, कि मुझे भूख लगी। तुम इतना ही कहोगे अब शरीर को भूख लगी; अब चलो इसे कुछ दें।
और शरीर को भूख लगी है, इसमें तुम्हारा कुछ भी हाथ नहीं है। प्रकृति ही शरीर में भूखी हो रही है। और अगर धूप में बैठ कर शरीर को धूप लग रही है तो परमात्मा ही तप रहा है -तुम्हारा इसमें क्या है? अब अगर तुम जबर्दस्ती बिठा कर इसको धूप में तपाओ तो यह अहंकार का लौटना हो गया। तुम कहो कि हम तो तपायेंगे, क्योंकि हम त्यागी हैं, तपायेंगे नहीं तो तपश्चर्या कैसे होगी,