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बोध तो चाहिए। लेकिन बुद्ध को भी तुम पापी नहीं कह सकते क्योंकि बोध इतना है कि साक्षी हो गये, कर्ता का भाव ही न रहा ।
मैं सुना, मुल्ला नसरुद्दीन - सर्दी के दिन थे-अपने घर के बाहर बैठा धूप ले रहा है। उसका बेटा होमवर्क कर रहा है; वह उसके कान मरोड़ रहा है, उसे गालियां दे रहा है। वह उससे कह रहा है. हरामजादे! किस नालायक ने तुझे पैदा किया? अरे उल्लू के पट्ठे !
पड़ोस में पंडित रहते हैं एक, उन्होंने सुना। यह हद हो गयी । यह गालियां अपने को ही दे रहा