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कहते हैं। यही तो पूरब की बड़ी से बड़ी निधि और खोज है। पश्चिम अभी बचकाना है। अभी पश्चिम जीवन से ऊबा नहीं। पूरब बड़ा प्राचीन है, बड़ा प्रौढ़ है - जीवन से ऊब गया। पश्चिम के तो विचारक सोच कर हैरान होते हैं कि यह मामला क्या है? बुद्ध, महावीर, पतंजलि, अष्टावक्र, लाओत्सु- ये सब यही एक बात करते हैं कि कैसे छुटकारा हो? यह मामला क्या है? अरे जीवन छूटने के लिए है? जीवन को थोड़ा लंबा करो, नई औषधियां खोजो, नए उपाय खोजो, आदमी लंबा जीए, खूब जीए! ये लोग क्या पागल हैं? ये सारे बुद्धपुरुष, इनका दिमाग फिर गया है ? ये कहते हैं कि कैसे आवागमन से छुटकारा हो?
पश्चिम अभी बचकाना है। अभी पश्चिम को जीवन का अनुभव नहीं । पूरब ने जीवन का बड़ा लंबा अनुभव लिया है और पाया : यह बिलकुल ही असार है। 'पानी केरा बुदबुदा' क्षणभंगुर है! और भीतर कुछ भी नहीं। फूटता है तो शून्य हाथ लगता है। प्याज की तरह है : पर्त -पर्त उघाडते चलो, नई पर्तें निकलती आती, निकलती आती, एक दिन शून्य, कुछ हाथ नहीं लगता। दौड़ो - धापो, कहीं पहुंचते नहीं, जहां के तहां खड़े-खड़े मर जाते हो। कहीं पहुंचे हो तुम? चले तो हो- कोई तीस साल चल लिया, कोई पचास साल चल लिया, कोई साठ साल चल लिया- लेकिन कहीं पहुंचे हो? कहीं ऐसा लगता है कि कोई पहुंचना हुआ कोई मंजिल आई ? मार्ग ही मार्ग.. . घूमते रहते! कहीं पहुंचना तो होता नहीं, तृप्ति तो कुछ होती नहीं । एक अतृप्ति दूसरी अतृप्ति में ले जाती है; दूसरी अतृप्ति तीसरी अतृप्ति में दो अतृप्तियों के बीच थोड़ी-सी आशा रहती कि शायद तृप्ति हो, बाकी तृप्ति कभी होती नहीं; संतोष कभी आता नहीं। संतुष्टि इस जगत में है ही नहीं ।
जन्म-मरण से छुटकारे की आकांक्षा मोक्ष है।
अष्टावक्र ने कहा कि तू जरा गौर से देख, जरा हाथ में खुर्दबीन ले कर देख जनक! कहीं भी भय तो नहीं है मरने का ? नहीं तो यह सब बात, ऊंची-ऊंची बात, बात की बात रह जाएगी। अगर तेरे प्राण में यह उतर गई हो, तो तुझे मरने को राजी होना चाहिए तुझे महामृत्यु के लिए राजी होना चाहिए। तब तो तुझे अहोभाव से नाचता हुआ मृत्यु के स्वागत के लिए जाना चाहिए।
हुआ, गीत गुनगुनाता हुआ मृत्यु के स्वागत को गया है उसी ने जीवन को जाना है। जो डरते और कंपते मृत्यु की तरफ जा रहे हैं, वे जीवन को नहीं जाने नहीं पहचाने और चूंकि जीवन को नहीं पहचाने, इसलिए मृत्यु का अर्थ भी नहीं समझ पाते। मृत्यु तो छुटकारा है। मृत्यु तो विश्राम है। लेकिन अगर मरते समय तुम्हारे मन में यह कामना रही कि फिर हो जाऊं, फिर हो जाऊं, मरते वक्त अगर तुम्हारे मन में यह कामना रही कि अभी थोड़ी देर और जी जाता, और जी जाता-तो तुम फिर लौट आओगे, तुम्हारी वासना तुम्हें फिर खींच लाएगी। वासना के धागे फिर तुम्हें वापि किसी गर्भ में ले आएंगे। मरते वक्त जो कहता : अहो, धन्यभागी मैं, आश्चर्य कि अब मैं जा रहा हूं और फिर कभी न आऊंगा!
बुद्ध ने ऐसी चेतना को अनागामिन कहा है - जो जाता है और फिर कभी नहीं आता, फिर जिसका आगमन कभी नहीं होता। बुद्ध ने कहा : धन्य हैं वे जो अनागामिन हैं-मरते क्षण जो पूरे मर जाते