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________________ वक्त खबर आई कि यहीं है वह झरना | सिकंदर ने उसकी खोज कर ली। वह सारे सिपाहियों को बाहर छोड़ कर, सैनिकों को बाहर छोड़ कर उतरा उस गुफा में, जहां वह झरना था। वह उतर गया गुफा में, सीढ़ियों से उतर कर झरने में खड़ा हो गया, बड़ा आह्लादित था कि इस झरने के जल को पी कर अब मैं सदा-सदा के लिए अमर हो जाऊंगा । उसने चुल्ल भी भर ली। तभी एक कौआ बैठा है पास ही चट्टान पर। वह कहने लगा रुक! सिकंदर तो बहुत घबड़ाया कौए को बोलते सुन कर । उसने कहा : घबड़ा मत, मेरी बात सुन ले इसके पहले कि तू पानी पीए क्योंकि मैं पी कर बड़ी झंझट में पड़ गया हूं । सिकंदर ने कहा : क्या झंझट ? कौए ने कहा: मैंने भी इसकी बड़ी खोज की, बामुश्किल मैं आ पाया। मैं कौओं का राजा हूं जैसा तू आदमियों का राजा है। मैं कोई छोटा-मोटा कौआ नहीं हूं । तू शाही कौए से बात कर रहा है । बामुश्किल मैं खोज पाया, मैंने हजारों कौए इस खोज में लगा दि थे, आखिर इसका पता चल गया, आखिर मैं आ गया और मैंने यह पी भी लिया - पी कर मैं फंस गया। अब मैं मरना चाहता हूं, क्योंकि सदियां बीत गईं तब से मैं जिंदा हूं । अब मैं मरना चाहता हूं मर नहीं सकता। सिर पटकता हूं चट्टानों पर कोई सार नहीं। जहर पी लेता हूं कुछ सार नहीं । गर्दन में फांसी लटका कर लटक जाता हूं कुछ सार नहीं। कोई उपाय मेरे मरने का नहीं है। यह पानी बड़ा खतरनाक है सिकंदर ! सिकंदर ने पूछा. तू और मरना क्यों चाहता है ? उस कौए ने कहा : अब क्या करूं? वही वही राग, वही - वही उपद्रव, कब तक देखूं ? मिलता तो कुछ है ही नहीं - दौड़-धूप, दौड़- धूप, दौड़ धूप...! अब तो मैं उनसे ईर्ष्या करने लगा जो मर जाते हैं; कम से कम शांति तो मिल जाती है। मुझसे ज्यादा अशांत इस पृथ्वी पर कोई नहीं सिकंदर ! फिर तेरी मर्जी! कहते हैं, सिकंदर ने हाथ से पानी नीचे गिरा दिया। सीढ़ियां चढ़ कर वापिस लौट आया। पानी उसने पीया नहीं। कहानी सच हो या झूठी, मगर कहानी बड़ी सार्थक है। तुम्हीं सोचो, अगर तुम अमर हो जाओ, क्या करोगे? यह पचास-साठ-सत्तर साल की जिंदगी तो किसी तरह कट जाती है। यह कोई बड़ी जिंदगी नहीं है। सत्तर साल आदमी जीता है, उसमें से बीस-पच्चीस साल तो सोने में निकल जाते हैं; आठ घंटा रोज सोया तो एक तिहाई तो सोने में निकल गया। पंद्रह-बीस साल पढ़ने-लिखने में, स्कूली उपद्रव में निकल गए, तब कुछ होश ही नहीं था। बचे बीस - स्व साल तो दफ्तर, फैक्टरी, दूकान, मजदूरी, पत्नी, बच्चे, हजार उपद्रव! मंदिर, मस्जिद- इसमें निकल गए। तुम्हारे पास बचता क्या सत्तर साल में? सात मिनट भी बचते हैं? लेकिन तुम जरा सोचो कि अगर मरो ही न, तो कैसी असुविधा न खड़ी हो जाएगी? जिसको जीवन की यह व्यर्थता दिखाई पड़ती है, वह अमरत्व की आकांक्षा नहीं करता। वह कहता है : 'हे प्रभु! महामृत्यु घटित हो, ऐसी मृत्यु घटित हो कि फिर जीवन न मिले। ' इसी को हम आवागमन से मुक्ति
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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