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________________ यूं भी झंझटें हैं, और व भी झंझटें हैं। अब आपका क्या कहना? म न तो रामतीर्थ से राजी हूं न तुम्हारे राम से। एक है जीवन के प्रति विधायक (पाजिटिव) दृष्टिकोण। एक है जीवन के प्रति नकारात्मक (निगेटिव) दृष्टिकोण। जब रामतीर्थ कहते हैं-राजी हैं उसी हाल में जिसमें तेरी रजा है तो उन्होंने जीवन को एक विधायक दृष्टि से देखा। काटे नहीं गिने, फूल गिने, रातें नहीं गिनी, दिन गिने। अगर रामतीर्थ से तुम पूछो तो वे कहेंगे : दो दिनों के बीच में एक छोटी-सी रात होती है। वे फूलों की चर्चा करेंगे, वे काटो की चर्चा न करेंगे। वे कहेंगे : क्या हुआ अगर थोड़े बहुत काटे भी होते हैं-फूलों की रक्षा के लिए जरूरी हैं! जीवन में जो सुखद है, उस पर उनकी नजर है, जो शुभ है, सुंदर है-असुंदर की उपेक्षा है। अशुभ के प्रति ध्यान नहीं है। और अगर प्रभु ने अशुभ भी चाहा है तो उसमें भी कोई छिपा हुआ शुभ होगा, ऐसी उनकी धारणा है। यह आस्तिक की धारणा है। यह स्वीकार- भाव है। जो व्यक्ति कहता है प्रभु, मैंने तेरे लिए परिपूर्ण रूप से ही कह दी, जिस व्यक्ति ने अपनी चैकबुक बिना कुछ आकड़े लिखे हस्ताक्षर करके प्रभु को दे दी कि अब तू जो लिखे वही स्वीकार है। 'राजी हैं उसी हाल में जिसमें तेरी रजा है! यूं भी वाह-वाह है, बू भी वाह-वाह है। ' रामतीर्थ कहते हैं, जहां रख-यूं भी तो भी ठीक, बू भी तो भी ठीक, स्वर्ग दे दे तो भी मस्त नर्क दे दे तो भी मस्त। तू हमारी मस्ती न छीन सकेगा, क्योंकि हम तो तेरी रजा में राजी हो गए। फिर तुम कहते हो, लेकिन अपने राम को ऐसा लगता है 'यूं भी गड़बड़ी है, बू भी गड़बड़ी है!' यह रामतीर्थ से ठीक उल्टा दृष्टिकोण है, यह नास्तिक की दृष्टि है-नकारात्मक! तुम कांटे गिनते हो। तुम कहते हो कि हा, दिन होता तो है, लेकिन दो रातों के बीच में एक छोटा-सा दिन। इधर भी रात, उधर भी रात; इधरे गिरे तो कुआ, उधर गिरे तो खाई-बचाव कहीं नहीं दिखता। रामतीर्थ का स्वर है राजी का, तुम्हारा स्वर है नाराजी का। तुम कहते हो गृहस्थ हुए तो झंझटें हैं, संन्यासी हुए तो झंझटें हैं। घर में रहो तो मुसीबत है घर के बाहर रहो तो मुसीबत है। अकेले रहो तो मुसीबत है किसी के साथ रहो तो मुसीबत है। मुसीबत से कहीं छुटकारा नहीं। तुम अगर स्वर्ग में भी रहोगे तो झंझट में रहोगे। स्वर्ग की भी झंझटें निश्चित होंगी। स्वर्ग में भी प्रतिस्पर्धा होगी. कौन ईश्वर के बिलकुल पास बैठा है? कौन दूर बैठा है? किसकी तरफ ईश्वर ने देखा और किसकी तरफ नहीं देखा?
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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