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से देखना, उसकी स्थिति को समझना और जैसा उचित हो वैसा करना ।
जीवन को कभी भी बंधे हुए नियमों में चलाने की जरूरत नहीं है। उसी से तो आदमी धीरे
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- धीरे मुर्दा हो जाता है। जीवन को जगाया हुआ रखो। बोध से जीयो सिद्धांत से नहीं। जागरूकता
से जीयो, बंधी हुई धारणाओं से नहीं । मर्यादा बस एक ही रहे कि बिना होश के कुछ मत करो ।
और सब मर्यादाएं व्यर्थ हैं।
हरि ओम तत्सत्!