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में हुआ अनुभव
इसलिए सत्य की दो व्याख्याएं हैं; सत्य तो एक ही । एक उस समय की व्याख्या है, जैसे मैं तुमसे कह रहा हूं | जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह तुम्हारे लिए अभी सत्य नहीं है। और जो मेरा सत्य है, अगर तुम अपना सत्य मान लो तो तुम भ्रांति में पड़ जाओगे । मेरा सत्य तुम्हारा सत्य नहीं है। तो मैं तुमसे दोनों बातें कहता हूं। मैं तुमसे पहले तुम्हारा सत्य कहता हूं क्योंकि वहीं से तुम्हें यात्रा करनी है। और फिर मैं तुमसे अपना सत्य कहता हूं कि वहां तुम्हें पहुंचना है।
अब समझो।
'आप कभी कहते हैं व्यक्ति नहीं, समष्टि ही है; एक पत्ता भी उसकी मर्जी के बिना नहीं डोलता । ' यह मैं कहता हूं - तुम्हारे कारण, तुम्हारी जगह से खड़े हो कर तुम्हारे जूतों में खड़े हो कर कहता हूं कि उसकी बिना मर्जी के एक पत्ता भी नहीं हिलता । मैं चाहता हूं ताकि तुम अपने अहंकार को हटा दो, उसकी मर्जी से हिलने लगो- उसके पत्ते हो जाओ! उसकी हवाएं हिलाएं तो हिलो; उसकी हवाएं न हिलाएं तो न हिलो ।
अभी देखते हैं, हवा नहीं है तो वृक्ष खड़े हैं! पता भी नहीं हिलता । कोई परेशान नहीं हैं। कोई शिकायत नहीं कर रहे हैं कि हम हिल क्यों नहीं रहे हैं? हवा आएगी तो हिलेगे; हवा नहीं आती तो मौन खड़े हैं, सन्नाटे में खड़े हैं- ध्यानस्थ, योगियों की भांति । अभी हवा आएगी तो नाचेंगे भक्तों की भांति। यह मैं तुम्हारी तरफ से कहता हूं कि उसकी मर्जी के बिना पत्ता नहीं हिलता। क्योंकि सच तो यह है कि हर पत्ते में वही है, इसलिए उसकी बिना मर्जी के हिल भी कैसे सकता है? यह मैं तुम्हारे लिए कह रहा हूं ताकि तुम अपनी मर्जी छोड़ो और उसकी मर्जी की तरफ झुको। यह मैं तुमसे कह रहा हूं ताकि तुम व्यक्ति को विसर्जित करो और समष्टि में जगो तुम क्षुद्र को छोड़ो और विराट की तरफ चलो, तुम लड़ों मत, समर्पण करो - इसलिए।
अगर तुमने मेरी बात समझ ली और तुम चल पड़े, तो दूसरी बात सच हो जाएगी।
'और कभी आप कहते हैं कि व्यक्ति की स्वतंत्रता इतनी पूरी है कि परमात्मा के लिए वहां जगह नहीं।
अगर तुमने मेरी बात मान ली और अहंकार का विसर्जन कर दिया, तो तुम स्वयं परमात्मा हो गए, अब परमात्मा के लिए भी जगह नहीं है। अगर तुमने अपने अहंकार को छोड़ दिया तो अब तुम्हारी स्वतंत्रता परम है, क्योंकि तुम स्वयं परमात्मा हो । अब तुम्हारी मर्जी से सारा जगत चलेगा और हिलेगा। इसलिए तुम्हें विरोधाभास मालूम पड़ता है।
एक दफे मैं कहता हूं तुम्हारी मर्जी से कुछ नहीं होता उसकी मर्जी के बिना पत्ता नहीं हिलता, और दूसरी दफे मैं तुमसे कहता हूं तुम मालिक हो तुम सब कुछ हो ! तुम्हीं हो चांद-तारों को चलाने वाले! स्वामी राम से किसी ने अमरीका में पूछा कि दुनिया को किसने बनाया? स्वामी राम ने कहा, मैंने 'चांद-तारे कौन चलाता है?"