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करना ही नहीं चाहता, वह ब्रह्मचर्य ! तो कैथोलिक पादरी तो ब्रह्मचारी होते हैं। मैंने जरा जरूरत से ज्यादा कर दिया।
पत्नी ने ही, हो सकता है, तुम्हें ध्यान करने भेजा हो, लेकिन संन्यास लेने नहीं भेजा था। यह जरा ज्यादा हो गया। तुम तो कैथोलिक पादरी होने की तैयारी करने लगे। हो सकता है पति ने ही पत्नी को भेजा हो, क्योंकि कौन पति अपनी पत्नी से परेशान नहीं है ! वह कहता है कि जा, चल चल अब ध्यान ही सीख ले- कुछ तो कलह बंद हो, कुछ तो घर में शांति रहे। मगर पति ने यह नहीं चाहा था कि तुम संन्यासी हो जाओ, कि पत्नी ध्यान में मस्त होने लगे, कि लोक-लाज खो कर मीरा की तरह नाचने लगे - यह नहीं चाहा था । यह तो मीरा के घर वालों को भी पसंद नहीं पड़ा था, इसलिए तो जहर का प्याला भेज दिया था।
जल्दी मत करना, नहीं तो दूसरा बाधा डालने लगेगा। जब तुम्हारे भीतर कुछ पैदा होने लगे तो संभालना, छिपाना। कबीर ने कहा है. 'हीरा पायो गांठ गठियायो !' जल्दी से गांठ लगा लेना, किसी को पता भी न चले! नहीं तो चोर बहुत हैं, बेईमान बहुत हैं बाधा डालने वाले बहुत हैं और ईर्ष्यालु बहुत हैं और ऐसा तो कोई भी मानने को राजी नहीं होगा कि तुमको ध्यान हो गया। क्योंकि इससे तो लोगों के अहंकार को चोट लगती है।
जब भी तुम कहोगे मुझे ध्यान हो गया, कोई नहीं मानने वाला है। क्योंकि उनको नहीं हुआ, तुम्हें कैसे हो सकता है! उनसे पहले, तुम्हें हो सकता है? कोई यह बात मानने को राजी नहीं। इसलिए जब भी तुम भीतर की संपदा की घोषणा करोगे, सब इंकार करेंगे।
वहां 'चमनलाल' बैठे हुए हैं। वे कल ही मुझसे कह रहे थे कि बड़ी मुश्किल हो गई है बड़ी घबड़ाहट होती है। दो-तीन महीने में आपके पास आने का मन होने लगता है, लेकिन सारा परिवार बाधा डालता है। पत्नी बाधा डालती, बेटे बाधा डालते, बेटिया बाधा डालतीं, पड़ोसी तक समझाते कि मत जाओ, कहां जा रहे हो? कहते थे कि अभी भी आया हूं बामुश्किल तो भी बेटा साथ आया है कि देखें कि मामला क्या है त्र: कहां जाते हो बार- बार ? हुलिया खराब कर लिया गेरुए वस्त्र पहन लिए- अब बहुत हो गया, अब घर में बैठो, अब कहीं और आगे न बढ़ जाना !
अब उनका रस लग रहा है, अब उनका ध्यान जग रहा है, कुछ घट रहा है! निश्चित घट रहा है! उनके भीतर जो घट रहा है, उसे मैं देख पाता हूं। जन्म हो रहा है किसी अनुभव का। लेकिन अब सब बाधा डालने को उत्सुक हैं, क्योंकि इतनी सीमा के बाहर कोई भी जाने नहीं देना चाहता।
पत्नी समझाती है कि घर में ही रहो, यहीं ध्यान इत्यादि कर लो, वहां जाने की जरूरत क्या है ? लेकिन जहां से मिलता हो, वहां आने की बार-बार आकांक्षा पैदा होती है - स्वाभाविक है। दो-चार महीने में लगने लगता है कि फिर उस रंग में थोड़ा डूब लें, फिर थोड़े उस संगीत में नहा लें, फिर थोड़ा वहां हो आएं तो फिर ताजगी हो जाए फिर ऊर्जा आ जाए, फिर जीवन गतिमान होने लगे ! नहीं तो जीवन में पठार आ जाते हैं।
तुम कहना ही मत मिल जाए तो चुपचाप रख लो संभाल कर । जब बहने की घड़ी आएगी,