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हूं कि तुम्हारे अहंकार की बाल्टी की कुछ जांच-परख करोगे, कभी भरी? अब तुम भाग जाओ यहां से। मैं तुम्हें शिष्य की तरह स्वीकार नहीं करूंगा, क्योंकि तुमने नियम भंग कर दिया। तुम धैर्य तो रखते। मैं तुम्हें कुछ दिखा रहा था।
भगा दिया तो शिष्य चला गया, लेकिन रात भर सो न सका। बात तो उसे भी जंची कि बात तो यही है. कितने जन्मों से भर रहे हैं अहंकार को, भरता नहीं है; तो शायद पेंदी न होगी। यही कारण हो सकता है।
अहंकार में पेंदी है भी नहीं। तो तुम ज्ञान से भरो, धन से भरो, पद से, त्याग से, प्रेम से-किसी से भी भरो, भरेगा नहीं। अंततः अहंकार का यह न भरना ही, अहंकार की यह विफलता ही तो परमात्मा के दवार पर लाती है। सौ-सौ चूहे खा कर बिल्ली हज को जाती है। और हज की तरफ जाने का उपाय ही नहीं है।
तो जो तुम्हें गुरु के पास ले आता है, वह भी अहंकार की विफलता ही है। लेकिन अहंकार कितना ही विफल हो जाए, आशा नहीं छोड़ता। आशा अहंकार का प्राण है। वह गुरु के पास आता है, अब वह सोचता है धर्म से भर लेंगे, ज्ञान से भर लेंगे, ध्यान से भर लेंगे। तो थोड़े दिन सरकता है। भरने की चेष्टा यहां भी करता है।
लेकिन अगर गुरु के प्रति समर्पण का सूत्र पैदा हो गया, तो अहंकार ज्यादा दिन टिकेगा नहीं। दोनों थोड़े दिन साथ रह सकते हैं, ज्यादा दिन साथ नहीं रह सकते। रहीम का एक वचन है
कहु रहीम कैसे निभै बेर केर को संग
वह डोलत रस आपने उनके फाटत अंग। केले का वृक्ष और बेर का वृक्ष, दोनों का साथ-साथ होना ज्यादा दिन चल नहीं सकता।
कहु रहीम कैसे निभै बेर केर को संग
वह डोलत रस आपने....... बेर तो अपने आनंद में मग्न हो कर डोलता है। उनके फाटत अंग।
लेकिन उसकी शाखाओं के छूने, कीटों के छूने से केले के तो पत्ते फट जाते हैं। कोई केले के पत्ते फाड़ने के लिए बेर कोई चेष्टा करता नहीं; वह तो अपने रस में डोलता है; हवाएं आ गईं सुबह की, मग्न हो कर नाचने लगता है। लेकिन उसका नाचना ही केले की मौत होने लगती है।
अगर तुम्हारे भीतर अहंकार भी है-जो कि स्वाभाविक है, और तुम्हारा सदगुरु के प्रति प्रेम भी है जो कि बड़ा अस्वाभाविक, जो कि बड़ी महत्वपूर्ण घटना है, बड़ी अदवितीय घटना है, अपूर्व घटना है, क्योंकि अपने प्रति प्रेम का नाम तो अहंकार है, किसी और के प्रति प्रेम का नाम निरहंकार है। और सदगुरु के प्रति प्रेम का तो अर्थ है कि जहां से तुम्हारे अहंकार को तृप्त करने का कोई भी मौका न मिलेगा। अगर तुम सदगुरु के समर्पण में, सदगुरु के सत्संग में नाचने लगे, मदमस्त होने लगे,