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पड़े तो दुर्घटना हो जाएगी। क्योंकि एक क्षण लगेगा दो सौ मील पार करने में। अगर हवाई जहाज आठ सौ मील प्रति घंटे की रफ्तार से जा रहा है, तो कितनी देर लगने वाली है? तो अगर हवाई जहाज के सामने ही जब कोई चीज आ जाए तब दिखाई पड़े, तब तो गए; तब तो तुम्हारे देखने और बचाने के बीच समय न होगा। तो राडार देखता है दो सौ मील, छह सौ मील, हजार मील दूर - बादल हैं, बिजली चमक रही है, पानी गिर रहा है, क्या हो रहा है?
मन राडार है। वह देखता है, कौन छुरा मारने आ रहा है? वह देखता है, अरे, यह वृक्ष गिर रहा है, हट जाओ! वह देखता है, राह पर कांटे पड़े हैं, बच जाओ। मगर है वह शरीर का सेवक, शरीर की सेवा में रत है। वह शरीर का ही विकसिततम रूप है। वह शरीर की ही शुद्ध ऊर्जा है।
इसलिए जब शरीर कंपेगा, तब तो मन कंपेगा ही। कभी-कभी तो शरीर नहीं भी कंपता और मन कंप जाता है। जैसे कि तुमसे कोई कह दे कि भूकंप आने वाला है, अभी आया नहीं, तब इस शरीर को तो कुछ पता नहीं चल रहा, लेकिन मन कैप जाएगा कि भूकंप आने वाला है।
देखा अभी, पेकिंग में कई दिनों तक लोग घर के बाहर तंबू डाले पड़े रहे ! भूकंप आने वाला है, इसकी संभावना से मन तो कंप गया, मन तो घबड़ा गया।
अभी यहां कोई जोर से चिल्ला दे, 'आग, आग-इनमें से कई भाग खड़े होंगे। आग न भी लगी हो, तो भी भाग खड़े होंगे, क्योंकि इसकी सुविधा कहा मिलेगी कि जांच-पड़ताल करें? मन ने सुना आग कि भागा मन ।
देखा तुमने, कोई कह दे नीबू और तत्क्षण लार मन में बहनी शुरू हो जाती है! अभी नीबू शरीर में डाला नहीं, लेकिन नीबू शब्द - और भीतर लार बहनी शुरू हो गई! मन तैयारी करने लगा कि नीबू करीब आ रहा है। शब्द आया है तो शायद यथार्थ भी आता होगा।
उस झेन गुरु ने हैरिगेल को कहा: भागे तुम, लेकिन तुम्हारा भागना व्यर्थ था, क्योंकि तुम भूकंप में ही भागे जाते थे। भागा मैं भी, यद्यपि तुम्हें दिखाई न पड़ा; मैं भीतर की तरफ भागा। मैंने तत्क्षण अपना तादात्म्य शरीर और मन से अलग कर लिया इन पर भूकंप घट सकता है, इनसे दोस्ती अभी ठीक नहीं। मैं तत्क्षण अपने को अलग कर लिया। शरीर कंपता रहा, मन कंपता रहा- मैं भीतर बैठा देखता रहा। भूकंप उग जाता तो शरीर मरता, मन टूटता, बिखरता; मेरा कुछ होने वाला नहीं था। नैनं छिदति शस्त्राणि - नहीं शस्त्र उसे छेद पाते, नैनं दहति पावकः - नहीं आग उसे जला पाती
है।
'किया और अनकिया कर्म और द्वंद्व किसके कब शांत हुए हैं। इस प्रकार निश्चित जान कर इस संसार में उदासीन, निर्वेद हो कर अव्रती और त्यागपरायण हो । '
तुमने 'उदासीन' शब्द सुना होगा। लेकिन इसका ठीक-ठीक अर्थ शायद कभी न समझा होगा । लोग तो समझते हैं. उदासीन का संबंध उदास से है। लोग सोचते हैं : जो जिंदगी से उदास हो गए वे उदासीन। उदास से उदासीन का कुछ लेना-देना नहीं। क्योंकि जिंदगी में जो उदास हो गए हैं, वे तो उदासीन हो ही नहीं सकते। जिंदगी में उदास होने का तो इतना ही मतलब है कि अभी उनकी