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उन दोनों के होने का ढंग इतना अलग है कि एक-दूसरे का कहीं मिलन नहीं हो सकता। भूकंप आएगा तो शरीर पर तो निश्चित परिणाम होगा; क्योंकि शरीर इसी मिट्टी का बना है, इसी भूमि का बना है, जिसमें भूकंप आया है। दोनों की तरंगें एक हैं। दोनों एक ही धातु से निर्मित हैं एक ही द्रव्य से निर्मित हैं। तो पूरी भूमि कैप रही हो तो तुम्हारा शरीर न कंपे, यह नहीं हो सकता; शरीर तो कंपेगा।
यही तो कहते अष्टावक्र कि अरे पागल, कौन कब शांत हुआ? कौन कब सुख-दुख के पार हुआ? एक सीमा तक तो सब कंपता ही रहेगा। भूकंप आएगा तो महावीर को भी आएगा, कोई तुम्हारा शरीर ही थोड़े ही टूटेगा? अगर महावीर होंगे तो उनका शरीर भी टूटेगा। शरीर तो मिट्टी का है, तो मिट्टी के नियम काम करेंगे। और जब भूकंप आएगा और शरीर टूटेगा, तो मन भी विचलित होगा, क्योंकि मन तो शरीर का गुलाम है क्योंकि मन तो शरीर का सेवक है; क्योंकि मन तो शरीर का ही अपने को बचाए रखने का एक उपाय है, अपनी सुरक्षा है।
जब भूख लगती है तो मन कहता भूख लगी क्योंकि शरीर अबोल है, गंगा है, तो उसने एक बोलने वाले का सहारा ले रखा है। प्यास लगती है तो मन कहता है प्यास लगी; शरीर कह न सकेगा। तो जैसा तुमने सुना होगा कि एक अंधे आदमी ने और एक लंगड़े आदमी ने दोस्ती कर ली थी दोनो भिखमंगे थे, एक-दूसरे को सहारा देते थे। अंधा देख नहीं सकता था, लंगड़ा चल नहीं सकता था। अंधा चल सकता था, लंगड़ा देख सकता था दोनों की दोस्ती काम आई। अंधा बैठा लेता था लंगड़े को अपने कंधों पर, दोनों भिक्षा मांग आते थे। दोनों अकेले तो असमर्थ थे, दोनों साथ-साथ बड़े समर्थ हो जाते थे।
शरीर में घटना घटती है, मन में अंकन होता है। मन और शरीर का संयोग है। मनोवैज्ञानिक तो कहते हैं, मन और शरीर इस तरह दो चीजों की बात नहीं करनी चाहिए-मनोशरीर। एक ही घटना है। उसका एक बाहर का हिस्सा है, एक भीतर का हिस्सा है। तो अब नवीन मनोविज्ञान में शरीर और मन ऐसे दो शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाता, बल्कि 'मनोशरीर' का प्रयोग किया जाता है, साइकोसोमैटिक। दोनों संयुक्त हैं।
इसलिए जो शरीर में घटता है, उसी तरंगें मन तक पहुंच जाती हैं। सच तो यह है शरीर में घटा नहीं कि तरंगें पहुंच जाती हैं। कभी-कभी तो शरीर में घटने के पहले पहुंच जाती हैं। जैसे कोई आदमी छरा लिए चला आ रहा है मारने तुम्हें, तो अभी शरीर में तो छरा लगा नहीं, लेकिन मन में खबर पहले पहुंच जाएगी।
मन की जरूरत ही यही है कि कुछ घटे, उसके पहले खबर दे दे कि बचो, यह आदमी छरा मारने आ रहा है। तुम जब सोए हो, तब कोई छुरा मारने आए, तो मन सोया रहता है। शरीर तो मौजूद रहता है, लेकिन शरीर तो अंधा है, शरीर को तो कुछ दिखाई पड़ता नहीं; कोई आ जाए, छुरा मार जाए, तो कुछ पता न चलेगा। तुम जागे हो तो मन सजग है। मन तो ऐसा है जैसे तुमने हवाई जहाज में राडार देखा हो। जैसे राडार का उपकरण दो सौ मील दूर तक देखता रहता है, क्योंकि हवाई जहाज की गति इतनी है अब तो, ध्वनि से भी ज्यादा गति है, कि अगर दो सौ मील दूर तक दिखाई न