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को मत भर लेना। इससे और भी अनुगृहीत हां जाना कि प्रभु का प्रसाद मिला, और मैं तो पात्र भी न था। इससे अहंकार को और विसर्जित होने देना, तो और घटेगा, और घटेगा । तुम्हारा पात्र जितना शून्य – होने लगेगा अहंकार से, उतना ही परमात्मा भरने लगेगा। एक घड़ी ऐसी आती है कि तुम सिर्फ शून्य-मात्र रह जाते हो - महाशून्य ! उस महाशून्य में महापूर्ण उतरता है।
पहली किरण आई है अभी ताजी - ताजी सुबह की, अभी सूरज उगने को है, प्राची लाल हुई, लाली आ गई है प्राची पर, प्राची लाल हो गई है - तुम कहीं अहंकार में आंख बंद मत कर बैठना। पहले तो यह पहली किरण पानी बहुत मुश्किल है फिर पा कर खो देनी बहुत आसान है। जिन्हें नहीं मिली उनका उतना खतरा नहीं है- उनके पास कुछ है ही नहीं । जिन्हें यह किरण मिलती है, उनके पास संपदा है, उन्हें खतरा है। उस खतरे से सावधान रहना । अहंकार निर्मित न हो बस ! अनुग्रह का भाव और भी गहन होता जाए, तो और भी होगा, बहुत कुछ होगा यह तो अभी शुरुआत है। यह तो अभी श्रीगणेशाय नमः ! अभी तो शास्त्र प्रारंभ हुआ।
हरि ओं तत्सत्!