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अक्षर तो रसपूर्ण नहीं है बच्चे को । अभी तुम आम कितने ही लिखो, उसे कुछ मजा न आएगा। अभी वह देखता है रंगीन आम को। उसे देख कर उसके मुंह में स्वाद आ जाता है, वह कहता है, अरे आम ! आम को वह जानता है चित्र से आम के सहारे वह किनारे पर लिखा हुआ शब्द 'आम', वह भी उसे समझ में आ जाता है कि अच्छा तो यह आम है। जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होने लगता है, किताबों में से चित्र खोने लगते हैं। विश्वविद्यालय तक पहुंचते-पहुंचते किताबों में कोई चित्र नहीं रह जाते, सब चित्र खो जाते हैं, और अक्षर छोटे होने लगते हैं। फिर विश्वविद्यालय के बाद जो असली शिक्षा है वहां तो अक्षर और भी छोटे होते-होते अक्षर भी खो जाते हैं। कोरा कागज ! वही मेरी मेहनत चल रही है कि अब अक्षर को छोटा-छोटा करते-करते करते-करते एक दिन तुम्हें कोरा कागज दे दूं और तुमसे कहूं पढ़ो और तुम पढ़ो भी, और तुम गुनो भी, और तुम ग्नगुनाओ और नाचो भी और तुम मुझे धन्यवाद दे सको कि कोरा कागज आपने दिया !
ये शब्द तो केवल सेतु हैं, शून्य की तरफ इशारे हैं। तुम्हारे मन में अगर चुप होने की बात आती हो तो बिलकुल ही चुप हो जाना, इतना भी मत कहना कि चुप होने की बात आ गई, उतने में भी मौन टूट जाता है।
आखिरी प्रश्न :
महागीता पर हुए आपके प्रवचनों से मेरे सारे संशय दूर हो गए और मेरे सारे स्वनिर्मित बंधन क्षण में ढह गए और आज मैं आपकी करुणा से झूठे पाशों से मुक्त हुआ
कहा है 'स्वामी सदाशिव भारती' ने।
कुछ घटा है, निश्चित घटा है। मगर इससे बहुत सावधान रहने की जरूरत भी आ गई है। अब अगर अकड़ गए कि कुछ घटा है, तो खो दोगे। अभी बड़ी नाजुक किरण उतरी है, मुट्ठी में अगर जोर से बांध लिया, मर जाएगी। अभी कली उमगी है, अभी खिलने देना, फूल बनने देना। नहीं तो कभी-कभी ऐसा होता है, हम किनारे-किनारे पहुंच कर भी गंगा में बिना डूबे वापिस लौट आते हैं। बिलकुल पहुंच गए थे छलांग लगाने के करीब थे और लौट आते हैं।
कुछ निश्चित हुआ है सदाशिव को यह कहता हूं- इसलिए कि तुम्हें भरोसा आए, मजबूती आए। मगर यह भी सावधानी दे देनी जरूरी है कि इसमें अकड़ मत जाना। इससे अहंकार को घना मत कर लेना कि हो गया। अभी बहुत कुछ होने को है। कुछ हुआ है बहुत कुछ होने को है।
कुछ हुआ-सौभाग्य! प्रभु कृपा! अनुकंपा मानना उसे, क्योंकि तुम्हारे किए कुछ भी नहीं हुआ है। तुमने किया ही क्या है? सुनते-सुनते, यहां बैठे-बैठे हो गया है। इसे अनुकंपा मानना, इससे अहंकार