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हाले - दिल किससे कहते ?
अपने आप से छूट गए हम तेरी गली क्या छूटी है !
अगर उस गली में फिर अगर उस वृंदावन की गली में फिर प्रवेश करना हो तब अपने को छोड़ो! उतनी-सी दूरी है। बस तुम्हारे 'मैं' की दूरी ही एकमात्र दूरी है। एक ही कदम उठाना है- 'मैं' से 'न-मैं' में अहंकार से निरहंकार में और शेष सब अपने से हो जाता है। मधुशाला के द्वार खुले हैं। तुम 'मैं' को बाहर रख कर आ सकी तो यह मैकदा तुम्हारा है।
हरि ओम तत्सत्!