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मुल्ला
देती। उसकी अंतर्योति उसकी परम मर्यादा बन जाती है। वह सब मर्यादाओं से तो ऊपर उठ जाता है, लेकिन उसका आत्मबोध उसका अनुशासन बन जाता है।
प्रश्न उठना हमें स्वाभाविक है।
मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन ने अपने कुत्ते से एक दिन कहा कि अब ऐसे न चलेगा, तू कालेज में भरती हो जा। पढ़े-लिखे बिना अब कुछ भी नहीं होता। अगर पढ़ लिख गया तो कुछ बन जाएगा। पढ़ोगे-लिखोगे, तो होगे नवाब!
कुत्ते को भी जंचा। नवाब कौन न होना चाहे, कुत्ता भी होना चाहता है! जब पढ़-लिख कर कुत्ता वापिस लौटा कालेज से, चार साल बाद, तो मुल्ला ने पूछा, क्या-क्या सीखा? उस कुत्ते ने कहा कि सुनो, इतिहास में मुझे कोई रुचि नहीं आई। क्योंकि आदमियों के इतिहास में कुत्ते की क्या रुचि हो सकती है। कुत्तों की कोई बात ही नहीं आती, कुत्ते ने कहा। बड़े-बड़े कुत्ते हो चुके हैं, जैसे तुम्हारे सिकंदर और हिटलर, ऐसे हमारे भी बड़े-बड़े कुत्ते हो चुके हैं लेकिन हमारे इतिहास का कोई उल्लेख नहीं। इतिहास में मुझे कुछ रस न आया। जिसमें मेरा और मेरी जाति का उल्लेख न हो, उसमें मुझे क्या रस? भूगोल में मेरी थोड़ी उत्सुकता थी-उतनी ही जितनी कि कुत्तों की होती है, हो सकती है।... पोस्ट आफिस का बबा या बिजली का खंभा, क्योंकि वे हमारे शौचालय हैं। इससे ज्यादा भूगोल में मुझे कुछ रस नहीं आया।
मुल्ला थोड़ा हैरान होने लगा। उसने कहा, और गणित? कुत्ते ने कहा, गणित का हम क्या करेंगे? गणित का हमें कोई अर्थ नहीं है। क्योंकि हमें धन-संपत्ति इकट्ठी नहीं करनी है। हम तो क्षण में जीते हैं। हम तो अभी जीते हैं, कल की हमें कोई फिक्र नहीं। जो बीता कल है, वह गया; जो आने वाला कल है, आया नहीं-हिसाब करना किसको है? लेना-देना क्या है? कोई खाता-बही रखना है? तो मुल्ला ने कहा, चार साल सब फिजूल गए? नहीं, उस कुत्ते ने कहा, सब फिजूल नहीं गए। मैं एक विदेशी भाषा में पारंगत हो कर लौटा हूं। मुल्ला खुश हुआ। उसने कहा चलो कुछ तो किया! तो चलो विदेश विभाग में नौकरी लगवा देंगे। अगर भाग्य साथ दिया तो राजदूत हो जाओगे। और अगर प्रभु की कृपा रही तो विदेश मंत्री हो जाओगे। कुछ न कुछ हो जाएगा। चलो इतना ही बहुत। मेरे सुख के लिए थोड़ी-सी वह विदेशी भाषा बोलो, उदाहरण स्वरूप, तो मैं समझू।
कुत्ते ने आंखें बंद की, अपने को बिलकुल योगी की तरह साधा। बड़े अभ्यास से, बड़ी मुश्किल से एक शब्द उससे निकला।
उसने कहा, म्याऊं! 'यह विदेशी भाषा सीख कर लौटे हो?' लेकिन कुत्ते के लिए यही विदेशी भाषा है!
हर चेतना के तल की अपनी भाषा है और हर चेतना के तल की अपनी समझ है। जहां हम जीते हैं, वहां हम सोच भी नहीं सकते कि सर्वतंत्र स्वतंत्र हो कर भी हम शांत होंगे, सुनियोजित होंगे, सृजनात्मक होंगे-हम सोच भी नहीं सकते, सोचने का उपाय भी नहीं है। हमें समझ में नहीं आ सकता,