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चंद रातो में, मुलाकातो में
मुझको बहलाया है
रूप माया में मगर
सुख मेरे मन ने कहां पाया है!
तो 'मैत्रेय जी' तुम्हारे सपने थे सब खूब तुमने बुने । वे सब सपने थे टूटने को ही थे। उनमें शांति न मिली, सुख न मिला, छाया न मिली। ज्वर मिला, बीमारी मिली, तनाव मिला, संताप मिला-शांति न मिली ! संसार से थके-हारे को, महत्वाकांक्षा से थके हारे कों-संन्यास के अतिरिक्त और शरण कहां। हारे को हरिनाम ।
आखिरी प्रश्न :
मैं तेरे मैदे के काबिल हूं? यह हरगिज मैंने कहा नहीं । इस्तिहां और भी बाकी हैं क्या,
क्या है, जो मैंने सहा नहीं?
मैं तेरे मैकदे के काबिल हूं यह हरगिज मैंने कहा नहीं।
इसीलिए तुम मेरे मैकदे के काबिल हो। जिसने यह कहा कि मैं काबिल हूं वह नाकाबिल है। जिसने कहा, मेरी कोई योग्यता नहीं, उसे मैं अपनी मधुशाला में भरती कर लेता हूं। योग्यों की यहां कोई जगह नहीं। अहंकारियों के लिए यहां कोई उपाय नहीं।
'मैं तेरे मैकदे के काबिल हूं
यह हरगिज मैंने कहा नहीं। '
ठीक इसीलिए, बिलकुल ठीक इसीलिए मेरे द्वार तुम्हारे लिए खुले हैं। यह मेरी मधुशाला तुम्हारा मंदिर है। यहां न ज्ञानियों की जरूरत है; न पंडितो की। यहां न पुण्यात्माओं की जरूरत है; न साधु-महात्माओं की। यहां तो उनकी जरूरत है जो विनम्र हैं और झुकने की जिनकी तैयारी है। 'इस्तिहां और भी बाकी हैं क्या,
क्या है, जो मैंने सहा नहीं?'
कोई इस्तिहां बाकी नहीं है। अगर तुमने जो सहा है, उसे मूर्च्छा में नहीं सहा है तो फिर कोई इस्तिहां बाकी नहीं है। तुमने जो सहा है, अगर होशपूर्वक सह लिया है तो तुम आ गए हो साक्षी के किनारे; वह घटना घटने के ही करीब है, किसी भी क्षण घट सकती है। लेकिन अगर मूर्च्छा में सहा