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डायोजनीज ने कहा, जाते हो, एक बात कहे देता हूं, कहनी तो नहीं चाहिए, शिष्टाचार में आती भी नहीं, लेकिन मैं कहे देता हूं : तुम मरोगे बिना विश्राम किए।
और सिकंदर बिना विश्राम किए ही मरा! भारत से लौटता था, रास्ते में ही मर गया, घर तक भी नहीं पहुंच पाया। और जब बीच में मरने लगा और चिकित्सकों ने कहा कि अब बचने की कोई उम्मीद नहीं, तो उसने कहा, सिर्फ मुझे चौबीस घंटे बचा दो, क्योंकि मैं अपनी मां को मिलना चाहता हूं। मैं अपना सारा राज्य देने को तैयार हूं। मैंने यह राज्य अपने पूरे जीवन को गंवा कर कमाया है मैं वह सब लुटा देने को तैयार हूं. चौबीस घंटे! मैंने अपनी मां को वचन दिया है कि मरने के पहले जरूर उसके चरणों में आ जाऊंगा।
चिकित्सकों ने कहा कि तुम सारा राज्य दो या कुछ भी करो, एक श्वास भी बढ़ नहीं सकती। सिकंदर ने कहा, किसी ने अगर मुझे पहले यह कहा होता, तो मैं अपना जीवन न गंवाता। जिस राज्य को पाने में मैंने सारा जीवन गंवा दिया, उस राज्य को देने से एक श्वास भी नहीं मिलती! डायोजनीज ठीक कहता था कि मैं कभी विश्राम न कर सकूँगा।
खयाल रखना, कठिन में एक आकर्षण है अहंकार को। सरल में अहंकार को कोई आकर्षण नहीं है। इसलिए सरल से हम चूक जाते हैं। सरल.. परमात्मा बिलकुल सरल है। सत्य बिलकुल सरल है, सीधा-साफ, जरा भी जटिलता नहीं।
यदा नाहं तदा मोक्षो यदाहं बंधन तदा।
मत्वेति हेलया किंचित् मा गृहाण विमुडच मा।। 'जब मैं हूं, तब बंध है। '
यदा अहम तदा बंधनम्। मैं ही बंध हूं। मेरा भाव मुझे दूर किए है परमात्मा से। यह सोचना कि मैं हूं मेरे और उसके बीच फासला है। यही सीमा अटका रही। जिस क्षण मैं जानता हूं-वही है, मैं नहीं।
यदा अहम् न तदा मोक्षः। यदा अहम् न तदा मोक्ष: -जहां मैं नहीं, बस वहां मुक्ति, वहां मोक्ष।
एक ही चीज गिरा देनी है. मैं - भाव, अस्मिता, अहंकार। और जब तक चित्त में लहरें हैं, ब तक अहंकार नहीं गिरता, क्योंकि अहंकार सभी लहरों के जोड़ का नाम है। अहंकार तुम्हारी सारी अशांति का संघट है। अहंकार कोई वस्तु नहीं है कि तुम उठा कर फेंक दो। अहंकार तुम्हारे पूरे पागलपन का संग्रहीत नाम है। जैसे-जैसे तुम शांत होते जाओगे, वैसे -वैसे अहंकार विसर्जित होता जाएगा।
जैसे तुम गए और देखा दरिया में तूफान है, फिर तूफान शांत हो गया-फिर तुम क्या पूछते हो तूफान कहां गया? जब दरिया शांत है तो तूफान कहा है? क्या तुम कहोगे कि तूफान अब शांत अवस्था में है? तूफान है ही नहीं। और जब तूफान था तब क्या था? तब भी दरिया ही था, सिर्फ अस्तव्यस्त दरिया था। बड़ी लहरें उठती थीं, आकाश को छू लेने का पागलपन था, बड़ा महत्वाकाक्षी दरिया था, बड़ी आकांक्षा, बड़ी चाहत, बड़ा विचार, कुछ कर दिखाने का भाव दरिया में था। थक गया,