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ये सूत्र बड़े अनूठे हैं।
सजा का हाल सुनाएं, जजा की बात करें,
खुदा मिला हो जिन्हें, वो खुदा की बात करें। यहां खुदा के मिलने की घटना घटी है। अष्टावक्र और जनक के बीच खुदा घटा है। इसलिए कोई और बात नहीं चल सकती अब। तुम्हें तो कभी-कभी ऐसा भी लगने लगेगा : 'अब यह इतनी पुनरुक्ति हुई जा रही है अब यह बार-बार वही बात क्यों कही जा रही है?' लेकिन जिन्हें खुदा मिला हो, वे कुछ और कर ही नहीं सकते; वे बार-बार वही कहेंगे।
तुमने कभी देखा, जब छोटा बच्चा पहली दफे बोलना शुरू करता है, टूटे -फूटे शब्द होते हैं, बड़े सार्थक भी नहीं होते; पापा, मामा, ऐसे कुछ शब्द बोलना शुरू करता है लेकिन जब बच्चा बोलना शुरू करता है तो फिर दिन भर दोहराता है। प्रयोजन हो न प्रयोजन हो, संगति हो न संगति हो, उसे इतना रस आता है; एक बड़ी अदभुत क्षमता हाथ में आ गई है! वह पापा या मामा कहना सीख गया है। उसका जगत में एक नया अनुभव घटित हुआ है। वह समाज का हिस्सा बन गया है। अब तक समाज के बाहर था, अब तक जंगल में था, पापा कह कर प्रवेश-दवार से भीतर आ गया है। अब वह भाषा, समाज, समूह का अंग है। अब बोल सकता है।
तो जब पहली दफे बच्चा बोलता है, तो वह दिन भर गुनगुनाता है. पापा, पापा, मामा.?,| कुछ प्रयोजन न हो तो भी कहता है। कहने में ही रस लेता है। बार-बार दोहराता है, दोहराने में ही मजा पाता है।
ठीक वैसी ही घटना घटी है। एक नया जन्म हुआ है जनक का। प्रभु की पहली झलक मिली है। झलक प्राणों तक कौंध गई है, रोएं-रोएं को कंपा गई है। अब तो वे जो भी बोलेंगे, जो भी देखेंगे, जो भी सुनेंगे उस सबमें ही परमात्मा ही परमात्मा की बात होगी। यदयपि यह बात ऐसी है कि कही नहीं जा सकती, फिर भी जब घटती है तो हजार-हजार उपाय इसे कहने के किए जाते हैं।
आज के सूत्रों में अष्टावक्र जनक की पीठ पर हाथ रख कर थपथपाते हैं। वे कहते हैं, तू जीता। वे कहते हैं, तू घर लौट आया। तू जो कह रहा है ठीक कह रहा है। तेरी परीक्षा पूरी हुई है। तू उत्तीर्ण हुआ है।
पहला सूत्र,
'जब मन कुछ चाहता है-अष्टावक्र ने कहा-'कुछ सोचता है, कुछ त्यागता है, कुछ ग्रहण करता है, जब वह दुखी और सुखी होता है-तब बंध है।'
बंध की ठीक-ठीक परिभाषा हो जाए तो मोक्ष की भी परिभाषा हो जाती है। क्योंकि जो बंध नहीं है, वही मोक्ष है। और आसान है पहले बंधन की परिभाषा कर लेना, क्योंकि बंधन से हम परिचित हैं। आनंद की परिभाषा करनी हो तो बुद्ध कहते हैं : दुख का निरोध। दुख से हम परिचित हैं। जहां दुख न रह जाएगा, वहां आनंद। अंधेरी रात से हम परिचित हैं। सुबह की परिभाषा करनी हो तो कहना होगा : जहां अंधेरा न रह जाए।