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घूमो, दाएं घूमो, फिर भी तुम चले जा रहे हो । न तुम्हें लाइट दिखाई पड़ती है कि अब यह गाड़ी जाने की है कि नहीं है। तुम होश में हो?
वह पुलिस वाला यह सब सुनता रहा । आखिर उसने मुल्ला से कहा कि अब आप जाइए, आपको सजा पहले ही काफी मिल चुकी अब और क्या सजा ? यह पत्नी काफी है।
जो आदमी सुबह नहीं उठा, उसे सजा काफी मिल चुकी । अब और क्या उस बेचारे को, गरीब को और दंड दे रहे हैं कि पापी है, कि अपराधी है, कि आज्ञा का उल्लंघन हो गया!
नहीं, मैं तुम्हें कोई अनुशासन नहीं देता । मैं तो तुम्हें सिर्फ केवल एक बोध-मात्र देता हूं तुम जो भी करो जाग कर करो ।
अब रह गई बात.. पूछा है, अनिवार्य साधना ? कुछ अनिवार्य नहीं है यहां। क्योंकि जो भी अनिवार्य हो, वह बंधन बन जाता है। जो करना ही पड़े, वह बंधन बन जाता है। इसी तरह तो हमने बहुत सुंदर चीजें खराब कर दीं। जो करना ही पड़े उसका रस ही खो जाता है। तुम गए, और मां है, तो उसके पैर छूना ही चाहिए, वह अनिवार्य है, तो मां के पैर छूते हो-मजा खो गया, अनिवार्य हो गया! उससे मौज चली गई, उसमें से मुक्ति चली गई। अब तुम छूते हो, क्योंकि मां है और सदा छूना चाहिए, इसलिए छूते हों-स्व नियम, औपचारिकता ।
मुल्ला एक दिन अपने घर आया। और उसने देखा उसका मित्र उसकी पत्नी को चूम रहा है ?ड़ा तो वह बड़ा हैरान हो गया, सकते में खड़ा हो गया। मित्र भी घबड़ा गया, पत्नी भी घबड़ा गई और वह कुछ बोले ही नहीं। मित्र ने पूछा, कुछ बोलो तो! उसने कहा, बोलें क्या! मुझे तो करना पड़ता है यह, लेकिन तुम - क्यों कर रहे हो? मुझे तुम्हारी बुद्धि पर तरस आता है। खैर मेरी वह पत्नी है तो मुझे वह करना पड़ता है। इसमें कोई ... मगर तुम्हें क्या हुआ?
जो करना पड़ता है, उसमें से सब रस चला जाता है - वह चाहे पत्नी का चुंबन ही क्यों न हो। दुलार और प्रेम और आलिंगन भी कष्टपूर्ण मालूम होने लगते हैं, अगर करने पड़े। अनिवार्य...! मैं एक संस्कृत विद्यालय में शिक्षक था। जब मैं पहले – पहले वहां गया तो संस्कृत महाविद्यालय था, तो पंडितों का राज्य था वहां तो मैं तो बिलकुल एक उपद्रव की तरह वहां पहुंच गया। कुछ भूल-चूक हो गई सरकार की, वह मुझे वहां ट्रांसफर कर दिया। जल्दी उन्होंने फिर सुधार ली छ: महीनों में मुझे वहां से हटाया, क्योंकि वहां बड़ा उपद्रव शुरू हो गया। वे तो सब पंडित थे और वहां तो उन्होंने बड़ी अजीब हालत कर रखी थी।
मैं, कोई मेरे पास रहने की जगह न थी तो छात्रावास में मैं रुका। कोई सत्तर अस्सी विद्यार्थी छात्रावास में थे। उनको तीन बजे रात उठना पड़ता था, अनिवार्य। संस्कृत महाविद्यालय ! कोई इस आधुनिक सदी का तो नहीं, गुरुकुल पुराना तीन बजे रात उठना ! सर्दी हो कि गर्मी, वर्षा हो कि कुछ, तीन बजे तो उठना ही पड़ता। और फिर सबको कुएं पर जा कर स्नान करना है। मैं भी गया। जब तीन बजे पूरा होस्टल उठ आया तो मैं भी उठा, मैं भी गया कुएं पर मुझे लोग तब जानते भी नहीं थे। पहले ही दिन आया था, तो किसी ने मेरी फिक्र भी नहीं की। वे अपने नहा रहे थे और वे गाली