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मुल्ला ने कहा, धन्यवाद भगवान का, क्योंकि मैं कभी पढ़ना-लिखना सीखा नहीं।
अगर पढ़ना-लिखना आता ही नहीं तो आंख की जाली कटने से पढ़ना नहीं आ जाएगा। अगर नाचना आता ही नहीं तो तुम स्वर्ग में भी रोओगे। तुम्हें रोना ही आता है। तुम स्वर्ग में भी बैठ कर पोथा-पुराण खोल कर सोचोगे कि अब आगे क्या है? तुम स्वर्ग में भी कहोगे, क्या रखा है यहां? क्योंकि तुमने एक ही गणित और एक ही तर्क सीखा है कि यहां तो कुछ भी नहीं रखा है; सदा वहां, कहीं और, कहीं और है जीवन बरस रहा, यहां तो बस मौत है!
तुम जैसा तर्क पकड़े हो, अगर किसी भूल-चूक से तुम स्वर्ग पहुंच जाओ तो तुम उसे नर्क में रूपांतरित कर लोगे। तुम्हें हर चीज को नर्क बनाने की कला आती है। और उस कला का सबसे महत्वपूर्ण सूत्र यही है कि आज को मत देखना कल की आशा रखना, कल होगा सब! आज तो सह लो, आज तो रो लो; कल हंसेंगे! आज तो रुदन है, आंसू हैं, कल होंगी मुस्कुराहटें।
लेकिन कल जब तक आएगा तब तक रोने का अभ्यास भी सघन हो रहा है, इसे याद रखना। प्रतिपल तुम रो रहे हो, आज तुम रो रहे हो। रोज रोते-रोते रोने की कला आती जा रही है, आंखें सूजती जा रही हैं, आंसूओ के सिवाए तुम्हारी और कोई कुशलता नहीं है। कल आएगा तुम्हारे द्वार पर, लेकिन इस अभ्यास को तुम अचानक छोड़ थोड़े ही पाओगे! कल फिर आज की तरह आएगा। फिर तुम्हारा पुरातन तर्क काम करेगा कल; और रो लो! ऐसे ही तुम रोते रहे हो जन्मों -जन्मों, ऐसे ही तुम रो रहे हो। अगर ऐसे ही तुम्हें रोना है, रोते रहना है, तो बनाओ आदर्श!
मैं तुमसे कहता हूं : आदर्श-मुक्त हो जाओ। तुम्हें घबड़ाहट होती है, क्योंकि तुम्हारा चित्त कहता है, आदर्श-मुक्त? तुम्हारा अहंकार कहता है, आदर्श-मुक्त पड तो उसका तो मतलब हुआ कि फिर तुम कभी परिपूर्ण न हो पाओगे। मैं तुमसे कहता हूं तुम परिपूर्ण हो। पूर्णता तुम्हें मिलीहै-वरदान है, भेंट है परमात्मा की! अगर परमात्मा पूर्ण है तो उससे अपूर्ण पैदा हो ही नहीं सकता। और अगर परमात्मा से अपूर्ण पैदा हो रहा है तो तुम एक बात पक्की मानो कि तुम अपूर्ण से पूर्ण की कोई संभावना नहीं। थोड़ा सोचो तो हिसाब क्या हुआ? पूर्ण से अपूर्ण पैदा हो रहा है, पहले तो यह बात गलत। पूर्ण से पूर्ण ही पैदा होता है। उपनिषद कहते हैं : पूर्ण से पूर्ण निकाल लो तो भी पीछे पूर्ण शेष रह जाता है। पूर्ण से तुम अपूर्ण तो निकाल ही न सकोगे पाओगे कहां अपूर्ण? और फिर अब एक तो तुमने यह भ्रांति पाल रखी है कि पूर्ण से अपूर्ण हो सकता है। अब दूसरी भांति इस भ्रांति से पैदा हो रही है कि अब इस अपूर्ण को पूर्ण होना है। अब अएर्ण चेष्टा करेगा पूर्ण होने की।
थोड़ा सोचो, अपूर्ण की सब चेष्टाएं अपूर्ण रहेंगी! और अपूर्ण से पूर्ण को निकालने का कोई उपाय नहीं है।
अगर तुम सही हो तो नर्क ही एकमात्र सत्य है। अगर मैं सही हूं तो स्वर्ग हो सकता है। चुनाव तुम्हारा है। और तुम्हारी जिंदगी है और तुम्हें चुनना है। मैं तुमसे कहता हूं भोगो जीवन को इस क्षण! नाचो, गुनगुनाओ आनंदित होओ! यह आनंद का अभ्यास सघन होगा तो इसी आनंद के अभ्यास की सघनता में कल भी आएगा। और तुम आज में ही रस लेना सीख लोगे, तो कल भी तुम रस लोगे,