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अब यह सब कल्पना ही छोड़ दी। इति ज्ञानं! यही ज्ञान है। यही जागरण है। यही बोध है।
भोग एक तरह की कल्पना है, त्याग दूसरे तरह की कल्पना है। भोग से बचे तो त्याग में गिरे-तो ऐसे ही जैसे कोई चलता खाई और कुएं के बीच, कुएं से बचे तो खाई में गिरे। बीच में है मार्ग| न तो त्यागी बनना है, न भोगी बनना है। अगर तुम त्याग और भोग से बच सको, अगर तुम दोनों के पार हो सको, अगर तुम दोनों के साक्षी बन सको, तो संन्यस्त, तो संन्यास का जन्म हुआ।
संसारी संन्यासी नहीं है, त्यागी भी सन्यासी नहीं है। दोनों ने चुनाव किया है। भोगी ने चुनाव किया है कि भोगेंगे, और- और भोगेंगे, और भोग चाहिए, तो ही सुख होगा। त्यागी ने चुनाव किया है कि त्यागेंगे, खूब त्यागेंगे, तो सुख होगा। संन्यासी वही है, जो कहता है. सुख है। इति सुखम्! होगा नहीं। न कुछ पकड़ना है न कुछ छोड़ना है-अपने में हो जाना है। वहीं अपने में होने में सुख और ज्ञान है।
अन्यथा, तुम पीड़ाएं बदल ले सकते हो। तुम एक कंधे का बोझ दूसरे कंधे पर रख ले सकते हो। तुम एक नरक से दूसरे नरक में प्रवेश कर सकते हो, लेकिन अंतर न पड़ेगा।
मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी मुल्ला से कह रही थी. हमने फरीदा के लिए जो लड़का पसंद किया है, वह वैसे तो बहुत ठीक है, दो ही बातों की भूल-चूक है। एक तो यह उसकी दूसरी शादी है, पहली पत्नी तो मर गई है। विधुर है। मगर यह कोई बड़ी बात नहीं, पत्नी ने कहा। अभी जवान है। मगर जो बात अखरती है, वह यह है कि सब ठीक है-खिलता हुआ रंग ऊंचा कद, तंदरुस्त, नाक-नक्शा भी अच्छा पर एक ऐब खटकता है।
मुल्ला ने पूछा, वह क्या?
पत्नी ने कहा, लगता है तुमने ध्यान नहीं दिया। जब वह हंसता है तो उसके लंबे-लंबे दांत बाहर आ जाते हैं और वह कुरूप लगने लगता है।
मुल्ला ने कहा, अजी छोड़ो भी! फरीदा से विवाह तो होने दो, फिर उसे हंसने का मौका ही कहां मिलेगा?
अभी एक पत्नी मरी है उनकी, अब वे फरीदा के चक्कर में पड़ रहे हैं।
हम ज्यादा देर बिना उलझनों के नहीं रह सकते। एक उलझन छूट जाती है तो लगता है खाली-खाली हो गए। जल्दी हम दूसरी उलझन निर्मित करते हैं। आदमी उलझनों में व्यस्त रहता है।
मनोवैज्ञानिक कहते हैं, गैर-शादीशुदा लोग ज्यादा पागल होते हैं, बजाए शादीशुदा लोगों के। यह बड़ी हैरानी की बात है। जब मैंने पहली दफा पढ़ा तो मैं भी सोचने लगा कि मामला क्या है! होना तो उल्टा चाहिए कि शादीशुदा लोग पागल हों, यह समझ में आ सकता है। ज्यादा पागल हों, यह भी समझ में आ सकता है। सारी दुनिया से आंकड़े इकट्ठे किए गए हैं, उनसे पता चलता है कि गैर- शादीशुदा लोग ज्यादा आत्महत्या करते हैं, बजाए शादीशुदा लोगों के। यह तो जरा कुछ भरोसे योग्य नहीं मालूम होता। लेकिन फिर खोजबीन करने से मनोवैज्ञानिकों को पता चला कि कारण यह है कि गैर-शादीशुदा आदमी को उलझनें नहीं होती। पागल न हो तो करे क्या, फुर्सत ही फुर्सत! शादीशुदा आदमी को फुर्सत