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के वचन से बड़ी भांति होती है, लोग सोचते हैं : 'जगत कल्पना ? तो अगर हम शांत हो गए तो यह मकान समाप्त हो जाएगा 1' ये वृक्ष खो जाएंगे?' तो तुम समझे नहीं । जगत का अर्थ होता है: तुम्हारे मन से जो कल्पित है, उतना खो जाएगा। जो है, वह तो रहेगा। सच तो यह है कि जो है वह पहली दफे दिखाई पड़ेगा। तुम्हारे मन के कारण वह तो दिखाई ही नहीं पड़ता था। तुम तो कुछ देख लेते थे। तुम जो देखने के लिए आतुर थे वही तुम्हें दिखाई पड़ जाता था। तुम्हारी आतुरता बड़ी सृजनात्मक है। उसी सृजनात्मकता से सपना पैदा होता, कल्पना पैदा होती। मम्पनन्तमहाम्भोधौ विश्व नाम विकल्पना!
कुछ का
तुम्हारा विश्व तुम्हारी कल्पना है । तुम्हारे पड़ोसी का विश्व जरूरी नहीं कि तुम्हारा
हो। दो व्यक्ति एक ही जगह बैठ सकते हैं - और दो अलग दुनियाओं में।
एक सिनेमाघर में मुल्ला नसरुद्दीन और उसकी पत्नी लगभग आधा समय तक आपस में ही बातें करते रहे। उनके पास बैठे दर्शकों को यह बड़ा बुरा लग रहा था। एक दर्शक नें- मुल्ला नसरुद्दीन के पीछे जो बैठा था-कहा, 'क्या तोते की तरह टायं-टायं लगा रखी है? कभी चुप ही नहीं होते। ' इस पर मुल्ला बिगड़ गया। उसने कहा, क्या आप हमारे बारे में कह रहे हैं? उस दर्शक ने कहा, जी नहीं आपको कहां २ फिल्म वालों को कह रहा हूं। शुरू से ही बकवास किए जा रहे हैं, आपकी दिलकश बातों का एक शब्द भी नहीं सुनने दिया ।
अब यह हो सकता है दो आदमी पीछे बैठे हों फिल्म- गृह में, और पति-पत्नी आपस में बातें कर रहे हों तो एक हो सकता है परेशान हो कि फिल्म चल रही है वह सुनाई नहीं पड़ रही इनकी बकवास से; और दूसरा हो सकता है परेशान हो कि बड़ी गजब की बातें हो रही हैं इन दोनों की, यह फिल्म बंद हो जाए तो जरा सुन लें क्या हो रहा है? दोनों पास बैठे हो सकते हैं और दोनों के देखने के ढंग अलग हो सकते हैं।
हमारा देखने का ढंग हमारी दृष्टि है, हमारी सृष्टि है। दृष्टि से सृष्टि बनती है। जब तुम्हारी कोई दृष्टि नहीं रह जाती, जब तुम्हारे भीतर जैसा है वैसे को ही देखने की सरलता रह जाती, अन्यथा कुछ आरोपण करने की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती, तुम्हारे भीतर का प्रोजेक्टर, प्रक्षेपन-यंत्र जब बंद हो जाता है, तब तुम अचानक पाते हो. पर्दा खाली है। वह पर्दा सच है। पर्दे पर चलने वाली जो धूप-छाव से बने जो चित्र हैं, वे सब तुम्हारे प्रोजेक्टर, तुम्हारे प्रक्षेपन से निकलते हैं।
तो जब भी शास्त्रों में तुम कहीं यह वचन पाओ कि यह सब संसार कल्पना - मात्र है, तो तुम इस भ्रांति में मत पड़ना कि शास्त्र यह कह रहे हैं कि अगर तुम्हारा जागरण होगा, समाधि लगेगी तो सारा संसार तत्क्षण स्वप्नवत खो जाएगा। इतना ही कह रहे हैं तुम्हारा संसार तत्क्षण खो जाएगा। यह संसार तुम्हारा नहीं । यह तो तुम आए उसके पहले भी था, तुम चले जाओगे उसके बाद भी रहेगा। ये वृक्ष, ये पक्षी, यह आकाश. । तुम्हारा नहीं है इनसे कुछ लेना-देना । तुम सोओ तो है, तुम जागो तो है। तुम ध्यानस्थ हो जाओ, तो है; तुम वासनाग्रस्त रहो, तो है। यह तो नहीं मिटेगा । लेकिन इस संसार को पर्दा मान कर तुमने एक कल्पनाओं का जाल बुन रखा है। तुम जरा इस जाल