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मृत्यु ही समाधि है। और तुम्हारा न हो जाना ही प्रभु का होना है। जब तक तुम हो प्रभु रुका, अटका। तुम दीवाल हो। तुम मिटे कि द्वार खुला! सीखो मिटना!
और मिटने के दो ही उपाय हैं या तो साक्षी बन जाओ-जो कि अष्टावक्र, कपिल, कृष्णमूर्ति, बुद्ध इनका उपाय है; या प्रेम में डूब जाओ-जो कि मीरा, चैतन्य, जीसस, मोहम्मद, इनका मार्ग है। दोनों ही मार्ग ले जाते हैं या तो बोध, या भक्ति। मगर दोनों मार्ग का सार-सूत्र एक ही है। बोध में भी तुम मिट जाते हो, क्योंकि अहंकार साक्षी में बचता नहीं; और प्रेम में भी तुम मिट जाते हो, क्योंकि प्रेम में अहंकार के बचने की कोई संभावना नहीं। तो एक बात सार-निचोड़ की है. अहंकार न रहे तो परमात्मा प्रगट हो जाता है।
हरि ओम तत्सत्!