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तमन
स्वरहीन रवहीन गीत शुरू हो!
समस्त गान समाप्त होक
नीरव पारावारे!' -अब आखिरी गीत नीरव हो, बिना कहे हो, बिना शब्दों का हो! अब मौन ही आखिरी गीत हो। हंस येमन मानस-यात्री
तेमन सारा दिवस-रात्रि। -ये प्राण तो मानस-सरोवर के लिए, मान-सरोवर के लिए उड़ रहे हैं। ये प्राण तो हंस जैसे हैं जो अपने घर के लिए तडूफ रहे हैं।
हंस येमन मानस-यात्री
तेमन सारा दिवस-रात्रि। -अहर्निश बस एक ही प्रार्थना है कि कैसे उस शून्य में, कैसे उस महाविराट में, कैसे उस मानसरोवर में इस हंस की वापिसी हो जाए! कैसे घर पुन: मिले!
एकटि नमस्कारे प्रभु फीट नमस्कारे! समस्त प्राण उड़े चलूक
महामरण-पारे।। -ऐसा कुछ हो कि सारे प्राण अब इस जन्म और मृत्यु को छोड़ कर, जन्म और मृत्यु के जो अतीत है उस तरफ उड़ चलें।
ऐसी बस एक नमस्कार शेष रह जाए! बस, ऐसी एक प्रार्थना शेष रह जाए और मेघों की भांति तुम्हारे प्राण झुक जाएं अनंत के चरणों में तो सब प्रसाद-रूप फलित हो जाता है, घट जाता है। तुम झुको कि सब हो जाता है। तुम अकड़े खड़े रहो कि वंचित रह जाते हो।
तुम्हारे किए, तुम्हारी अस्मिता और अहंकार से, और तुम्हारे संकल्प से, दौड़-धूप ही होगी। तुम्हारे समर्पण से, तुम्हारे विसर्जन से, तुम्हारे डूब जाने से महाप्रसाद उतरेगा। तुम झुको।
'रसेर भारे नम्र नत घन श्रावण-मेघेर मतो एकटि नमस्कारे प्रभु एकटि नमस्कारे! समस्त मन पडिया थाक समस्त गान समाप्त होक समस्त प्राण उड़े चलूक
महामरण-पारे!' जीवन का परम सत्य मृत्यु के पार है। जीवन का परम सत्य वहीं है जहां तुम मिटते हो। तुम्हारी