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कहती है, सब लोक-लाज खोई । कोई और बड़ी शराब पी ली ! अंगसे से बनती है जो शराब, वही तो शराब नहीं। एक और भी शराब है, जो प्रभु - प्रेम से बनती है। वह पी ली। वह भी मदमस्त है।
लेकिन मीरा रुग्ण नहीं है। अगर मीरा रुग्ण है तो फिर तुम्हारे स्वास्थ्य की परिभाषाएं गलत हैं। क्योंकि मीरा जैसी मस्त और आनंदित है.. . स्वास्थ्य का लक्षण ही मस्ती और आनंद होना चाहिए। साधारण, जिसको मनोवैज्ञानिक कहते हैं नार्मल, वह तो बड़ा अशांत, बेचैन, परेशान, दुखी दिखाई पड़ता है। यह कोई स्वास्थ्य की परिभाषा हुई? ये चिंताग्रस्त लोग, दुखी लोग परेशान लोग, जिनके जीवन में कभी कोई फूल नहीं खिला, कोई सरगम नहीं फूटा, कोई रसधार नहीं बही - ये स्वस्थ लोग हैं? अगर यही स्वस्थ लोग हैं तो समझदार लोग तो मीरा का पागलपन चुनेंगे। वह चुनने योग्य है। पागलपन सही नाम से क्या फर्क पड़ता है ? गुलाब को तुम क्या नाम देते हो, इससे क्या फर्क पड़ता है ? गुलाब तो गुलाब है। गुलाब तो गुलाब ही रहेगा तुम गेंदा कहो, इससे क्या फर्क पड़ता है?
तुम महावीर को पागल कहो, इससे क्या फर्क पड़ता है? या परमहंस कहो, इससे क्या फर्क पड़ता है? महावीर महावीर हैं।
यह तुम खयाल में लेना। घबड़ा मत जाना ।
मेरे पास अगर तुम हो, तो निश्चित ही किसी शराब के पिलाने का आयोजन चल रहा है। यह मधुशाला है। इसे मंदिर कहने से बेहतर मधुशाला ही कहना उचित है। यहां मैं चाहता हूं कि तुम डोलो नाचो! यहां तुम किसी गहरी मस्ती में उतरो ! नया आयाम खुले!
दूर दिल से सब कदूरत हो गई है जीस्त कितनी खूबसूरत हो गई है !
थोड़ा पीओ मुझे!
दूर दिल से सब कदूरत हो गई है
सब चिंता, फिक्र, बेचैनी, अशांति, सब दूर हो जाएगी !
जीस्त कितनी खूबसूरत हो गई है!
और जिंदगी बड़ी खूबसूरत हो जाएगी। एक-एक फूल में हजार-हजार फूल खिलते दिखाई पड़ेंगे। इस कदर सतही है दुनिया की मसर्रत
दिल को फिर गम की जरूरत हो गई है।
और जब तुम जिंदगी के असली आनंद को जानोगे तो तुम चकित हो जाओगे । तुम पाओगे इस दुनिया के सुख से तो परमात्मा को परमात्मा के विरह में, परमात्मा के बिछोह में पैदा होने वाला दुख बेहतर है। इस दुनिया के सुखों से तो परमात्मा के बिछोह में रोना बेहतर है। इस दुनिया की मुस्कुराहटों से तो परमात्मा के लिए बहे आंसू बेहतर हैं।
इस कदर सतही है दुनिया की मसर्रत
दिल को फिर गम की जरूरत हो गई है।