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दुनिया में दो तरह के लोग पागल हो जाते हैं एक तो वे, जो बुद्धि से नीचे गिर जाते हैं, और एक वे जो बुद्धि के पार निकल जाते हैं।
इसलिए आश्चर्य की बात नहीं है कि मनस्विद संतो को पागलों के साथ ही गिनते हैं - दोनों को एबनार्मल...। मनोविज्ञान की किताबों में तुम संतो के लिए और पागलों के लिए अलग-अलग विभाजन न पाओगे। उनके हिसाब से दो ही तरह के आदमी हैं - नार्मल एबनार्मल साधारण और रुग्ण । साधारण तुम हो। रुग्ण दो तरह के लोग हैं-फिर वे किसी ढंग के रुग्ण हों; चाहे धार्मिक रुग्ण हों, चाहे अधार्मिक हों, चाहे नास्तिक, चाहे आस्तिक - लेकिन एबनार्मल हैं।
अभी भी जीसस पर किताबें लिखी जाती हैं पश्चिम में, जिनमें दावा किया जाता है कि जीसस पागल थे, न्यूरोटिक थे। अभी हिंदुस्तान में मनोविज्ञान का उतना प्रभाव नहीं है, इसलिए बुद्ध और महावीर, अष्टावक्र अभी बचे हैं। लेकिन ज्यादा दिन यह बात चलेगी नहीं। जल्दी ही हिंदुस्तान के मनोवैज्ञानिक भी हिस्मत जुटा लेंगे। अभी उनकी इतनी हिम्मत भी नहीं है; लेकिन जल्दी हिम्मत जुटा लेंगे। जो जीसस के खिलाफ लिखा जा रहा है, वह किसी न किसी दिन महावीर के खिलाफ लिखा जाएगा। और तुम पक्का समझो कि जीसस को पागल सिद्ध करने के लिए उतने प्रमाण नहीं हैं, जिससे ज्यादा प्रमाण महावीर को पागल सिद्ध करने के लिए मिल जाएंगे।
तुमने देखा, महावीर नग्न खड़े हैं! कम से कम जीसस कपड़े तो पहने हैं। अब यह तो पागलपन है। तुमने देखा, महावीर अपने बालों को लोच कर उखाड़ते हैं! पागलों का एक खास समूह होता है जो अपने बाल लोच कर उखाड़ता है। तुमने पागलों को देखा होगा, तुमने कभी खुद भी देखा होगा, जब तुम पर कभी पागलपन चढ़ता है, तो तुम कहते हो, बाल लोच लेने का मन होता है। कहावत है च कि बाल लोच लेने का मन होता है। स्त्रियों को गुस्सा आ जाता है तो बाल लोच लेती हैं- किसी पागलपन के क्षण में! बहुत पागल हैं पागलखानों में जो अपने बाल लोच लेते हैं। महावीर अपने बाल लोच लेते थे। केश लुंच ।
तुम्हारे पास एक गाली है - नंगा - लुच्चा । वह सबसे पहले महावीर को दी गई थी। क्योंकि वे नंगे थे और बाल लोंचते थे। नंगा - लुच्चा! अगर महावीर में खोजना हो पागलपन तो पूरा मिल जाएगा। लेकिन मनोवैज्ञानिक अभी कुछ भी नहीं जानते हैं। जो उनका विभाजन है, अज्ञानमय है। यह भी हो सकता है कि एक आदमी शराब के नशे में चल रहा हो रास्ते पर - डावांडोल, डगमगाता और कोई किसी के प्रेम में मदमस्त हो कर चल रहा हो; और कोई किसी प्रार्थना में डोल रहा हो। तीनों राह पर डावांडोल चल रहे हों, पैर जगह पर न पड़ते हों, समाए न समाते हों, भीतर की खुशी ऐसी बही जा रही हो-पीछे से तुम तीनों को देखो तो तीनों लगेंगे कि शराबी हैं। क्योंकि जैसा शराबी डांवांडोल हो रहा है, वैसी ही मीरा भी डावांडोल हो रही है, वैसे ही चैतन्य भी डांवांडोल हो रहे हैं। जैसे शराबी गीत गुनगुना रहा है, वैसी मीरा भी गीत गुनगुना रही है। पीछे से तुम देखोगे तो तुम्हें दोनों एक जैसे लगेंगे। लेकिन कहां मीरा और कहां शराबी ! कहा चैतन्य और कहां शराबी ! शराबी ने बुद्धि गंवा दी शराब पी कर | मीरा भी बुद्धि गंवा दी।